प्रमेयरत्नमाला एसी. 123 | Prameay Ratnmala Ac.123

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ विद्वान होकर जो अहंकार रहित होगा वही अपने वचनादि प्रयत्नों द्वारा श्राणिर्योकछा उपकार कर सकता है तथा वही प्रमाणताका पात्र दो सता दे । खंडेलवाल जातिभूषण--पं. जयचंदजी छाबड़ामें ये सर्व गुण मौजूद थे इसी कारण इनकी समाजमें विशेष प्रतिष्ठा रही तथा आगे भी कायम रहेगी । उक्त पंडितजीके विषयमे जो कुछ हमने लिखा हैं वद बहुत दी थोड़ा संक्षेपतासे लिखा दे यदि विशेष लिखते तो एक प्रंथका ग्रंथटी बन जाता) पंडितजीने अपने थोडेसे जीवन कालमें इतने टीका तथा विनतीस्वरूप झ्रथोंका निर्माण कर अपनी बुद्धिकी बहुत ही विचक्षण विलक्षणताका परिचय दिया है । दमने सुना टे कि उक्त पंडितजी साहेबने इन प्रंथोंके अलावा अन्य भी कई म्रंथॉपर टीका की है । यदि यह बात स्वांग सत्य है तो कहना पड़ेगा कि पंडि- तजीमें कोई बिलक्षण शक्ति थी । पाठकगण पंडितजी के: विषय में विशेष जाननेकी इच्छा रखते हों तो उनके निर्माण ब्रम उनके द्ाथकी लिखी हुई प्रक्षस्तिसे अपनी दच्छकी पूर्णं पूर्तिं करे । विनीत रामप्रसाद जेन-बम्बरे ।




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