आत्म - शिक्षण | Aatm - Shikshan

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Aatm - Shikshan  by श्यामबिहारी मिश्र - Shyambihari Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) शरीर के मालिक हैं, इससे उसका मनमाना उपयेग कर? सकते हैं । यद्द विचार सब प्रकार से तिरस्करणीय दे । प्रत्येक शरीरी के लिय भाग्तदुत शरोर एक थाती है । जितना चल और जितनी कार्यद्क्तता के याग्य उसे प्रऊति ने बनाया है, उसे बनाए न रखना मानें प्रति के घाखा देना है। प्रति मजुष्य के कत्तव्य सभ्यता एवं प्रकृति संबंधी नियमे के अचार हाने चादिष्टः झैर इन्हीं के। पालन करते हु उसे झापने शरीर द्वारा झधिर से झधिक भलाई करनी उचित है। श्ररृति संबंधो कत्तव्य का चरणेन सदम रोति से ऊपर किया जा चुका दै। शरीर के। स्वस्थ रखकर कार्य्यकुशल बनाना प्रारुतिक नियम का मुख्य अंग है।- इसके शथतिरिक्त मानसिक भाव थी. प्राकतिक नियमें। के समान ही हे। गए हैं, यदपि इन देने का झंतर ध्यान में - रखने से मजुष्य बहुत सी बुराध्यें से बच ` खकता दै । यद श्र॑तर य्दा पर हम एक उदाहरण दारा दिललाते हे । साधा. रण शरीर के लिये यदि सपुचित वख, मेजन श्ररः व्यायाम - प्राप्त हा, तो उसे झापत्यात्पादिनी चासनाशओं की सपुचित संतुष्टि के झतिरिक्त भ्रेार कुछ नहीं चाहिए । उसे इसकी कद परवाद नदी है कि रूर भरे खासे के कपड़े से शोत निवारण हातादहै, श्रथवा मलमलया जामेबार्से। श्सी भाँति श्रच्छे से झच्छे पेापलो; फुटबाल श्रादि स भाप व्यायाम - के! चदद निजन स्थान में सो दौड़ने से प्राप्त व्यायाम से श्रेछ तर नदीं खममता | यद्दी दशा भजन की है। फिर मानसिक शाव इन स्वासाविक सुविधाओं के अतिरिक्त झनेकानेक अन्य पदार्थ माँगता है, झार ज्यों ज्यों थाड़ी चासनाएँ शांत-




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