अथ सत्यार्थप्रकाश | Ath-SatyarthaPrakash
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
610
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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॥ भूमिका ॥ ७
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हो इस लिये जो जिस गृन्यको मानता रागा उस गृन्धख विषयक खणन मण्डन
भौ उसो के लिये समभा जाता है।परन्तु कितने हो ऐसे भी हैं कि उस गन्धको
मानते जानते शैं तो भी सभा वा संवाद में बदल लाते हैं इसो हेतु ने/जैन सेपग
अपने गन्धो को दधिमा “रखते हैं दूसरे भलस्थ को न 'देवे, सुजातेऔर न 'घढ़ाले
इस लिये कि उन में ऐसो २ असस्थव बाते भरी हेंजिन का कोई को सत्र सो
मिथो ने से नरो दे सकता । झूठ बात का छोड़ का देना हो उत्तर है ॥
१३वे' समुल्लास में ईसाइयो' का मत लिखा है थे लोग बाय बिल को अपन,
धर्मपुस्तक मानते हे दन का विशेष समाचार उसो १२ तेरह समरलास में दे खिये।
और १४ चौट्इवें समुस्लास में मुसलुमानें के मतविषय में लिखा लोग
कुरान के अपने मत का मूल पुस्तक मानते हैं इन का भी विशेष व्यवहार
१४ वे' समुस्लास में देखिये । और इस के श्रागी वे दिकमत के विषय में लिखा
है लो कोई इस ग्रन्थ कर्ता के तात्पर्य से विरुद मनसा से देखे गा उस को कुछ
। भौ अभिप्राय विदित न होगा क्यं कि वाक्याधंबोध में चार कारण छोते
हे, प्राकार न्ता, योग्यता, ्रासत्ति, श्रोर तात्पययै | जब इन चारों बातों पर
ध्यान देकर जा पुरुष गून्य को देखता है तब उस को गृग्य का श्मभिप्राययधायोग्य
विदित छोता है । “श्राकाडः का, किसी विषय पर वक्ता का श्रोर वाकास् परीं
कौ श्राकांच्षा परस्पर होती है । “योग्यता” वह कहाती है कि जिस से जो
इोसके जेसे जलसे सोचना | “आसत्ति” जिस पद के साध जिसका सम्बन्ध छो उसी
के समोप उस पढ़ को बोलना वा लिखना । “ तात्पर्य ”” जिस के लिये वक्ता मे
शब्टोश्चारण वा लेख कियादह्ो उसी के साध उस वचन वा लेख को युक्त करना ।
बहतसे शठी दुरागहो मनुष्य छोते हैं कि जो वक्ता के अभिप्राय से विरुष कल्पना
किया करते हं । विशेष कर मत वाले लोग क्योंकि मत कैश्रागुद्द से उनकी बुद्ि
अन्धकार में फस के मट हो जाती है इस लिये जैसा मैं प्ररान, जैंनियों के गुन्थ,
वावबल और कुरान को प्रथम हो वुरो इृष्टिसे न देख कर उनः मेषे शणो का
गृहणक्षोर दोषों का त्याग तथा असल मनुस्थ लाति को उम्रति के लिये प्रयक्ष
कदर इं? वेसा सब को करना योग्य है। इन मतों के थोड़े २ हो दोष प्रकाशित
किये हैं जिन का देखकर मनुथ लोग सत्याधसत्य मत का निर्णय कर सके और
सत्य का गृहण तथा असत्य का त्याग करने कराने में समर्थ होवें | क्योंकि ए क
मनुष्य जाति में बदका कर विरुद बुच्ि कराके शक दूसरे को शन्न॒ बना ला
मारना विदानो के स्वभाव से बच: है। यदापि इस गुन्थ को देखकर अ्विदान लोग
अन्यधा हौ विचारे'गे तथापि बुदिमान् जाग यथायोग्य दस का श्रभिप्राय सममे
न
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