वातायन | Vatayan

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Vatayan by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ फोटोग्राफी जी, देखिए म द्धी रहता हूँ, आप लाहौर जा रही हैं । मेरा आपका परिचय भी नहीं है । इस दिनको छोड़कर शायद फिर कभी मिलना भी न होगा । मै व्यवसायी फ़ोटोग्राफर भी नहीं हूँ । आपको मैं वचन देता हूँ, भरे पास तस्वीर रहनेमें, आपका कुछ भी अहित न होगा । मौनि फिर अपनी साधिनकी ओर देखा; पर उनकी तो तस्वीर खिंची न थी। मनि कहा-आप अखवारमे मेज देंगे, अपने यह लगा लेंगे । रामेश्वरने तुरंत कहा--मैं वचन देता हूँ, न मैं ठगाऊँगा, न कहीं भेजा; पर अआ मेरा परिश्रम व्यर्थ न कीजिए | मौँको विश्वास हो चुका था, कि यह बात लाहौरमें बालकके पिता तक अवश्य पहुँचेगी । वह बेचारी कया करतीं £ वोटीं-- नदीं मप तोड़ ही दीजिए । वह इतना अविश्वासी समझा जा रहा है, इसपर रामेश्वर भीतरस बड़ा घुट रहा था | इच्छा हुई कि सच-सच वात कह दूँ; पर ध्यान हुआ--उसे सच कौन मानेगा ! मैं कहूँगा, तस्वीर नहीं खिंची, सिर्फ बाठककों वहलानेको तमाशा किया गया था, तो कोई यकीन न कणा | वह समझेंगी--मे तस्वीर रखना चाहता हूँ, इससे झूठ वोता हूँ और बहाने बनाता हूँ । रामेश्वरको इस ठाचारीपर बहुत दुःख हुआ; परन्तु उसने कहा--अगर आप कहेंगी, तो मैं तस्वीरको तोड़ ही दूँगा; पर मैं फिर आपसे कहता हूँ, मैं दिल्ली चटा जाऊँगा । पिर आपके दर्शन कभी मुझे नहीं होंगे । अगर आपकी तस्वीर मेरे पास रही भी, और मैंने टॉँग भी ढी, तो इसमें आपका क्या हजे है ? देखिए, बाठक स्यामका चित्र मेरे पास रहने दीजिए । आपके चित्रके बारेमें मैंने आपसे




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