जैन परम्परा और प्रमाण | Jain Prampara Aur Praman (1986) Ac 6266
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
950 KB
कुल पष्ठ :
26
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जन परम्परा श्रौर प्रमाण
उपनाम 'जिन' था, घ्त उनके द्वारा प्रबतित धमं जैनधमं कहलाथा ।
इस तरह जनवर्म विश्व का सवंप्रथम घम बना ।
भगवान् ऋषभनाथ का वर्णन वेदों में नाना सदर्भों मे मिलता
है । करई मन्त्रो मे उनका नाम प्राया है । मोहन-जो-दडो (सिन्धु-
घाटी) मे पाँच हजार वर्ष पूर्व के जो पुरावशेष मिले हैं उनसे भी यही
सिद्ध होता है कि उनके द्वारा प्रवर्तित धर्म हजारो साल पुराना है ।
मिट्टी की जो सीलें वहाँ मिली हैं, उनमे ऋषपभनाथ की नग्न यो गिमूर्ति
है। उन्हे कायोत्सगं मुद्रा मे उकेरा गया है । उनकी इस दिगम्बर
खड्गासनी मुद्रा के साथ उनका चिह्न बैल भी किसी-न-किसी रूप में
भ्रकित हुशधा है । इन सारे तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि जनों का
अस्तित्व मोहन-जो-दडो की सम्यता से झधिक प्राचीन है ।
श्री रामप्रसाद चन्दा ने भ्रगस्त, १९३२ के 'माडन रिव्यू' मे
कायोत्सगं मुद्रा के सम्बन्घ में विस्तार से लिखा है (देखिये इसी
पुस्तिका का अ्रन्तिम भ्रावरण-पृष्ठ) । उन्होंने इस मुद्रा को जैनो की
विशिष्ट ध्यान-मुद्रा कहा है भ्रौर माना है कि जैनधर्म प्राग्वेदिक है,
उसका सिन्धुघाटी कौ सम्यता पर व्यापक प्रभाव था ।
मोहन-जो-दडो कौ खुदाई मे उपलन्ध मृष्मद्राग्नो (सीलो) मे
योगियो की जो ध्यानस्थ मृद्राएं है, वे जेनधमं की प्राचीनता को सिद्ध
करती है । वैदिक युग मे ब्रात्यो और श्रमणो * * की परम्परा का होना
भी जेनो के प्राग्वंदिक होने को प्रमाणित करता है । ब्रात्य का अर
महाब्रती है । इस शब्द का वाच्यार्थ है. 'वह व्यक्ति जिसने स्वेच्छया
प्रात्मानुशासन को स्वीकार किया है' । इस भ्रनुमान की भी स्पष्ट
पुष्टि हुई है कि ऋषभ-प्रवतित परम्परा, जो श्रागे चल कर शिव मे
जा मिली, वेदर्चाचत होने के साथ ही वेदपु्व भी है ।1१ 35 जिस तरह
मोहन-जो-दडो मे प्राप्त सीलो कौ कायोत्सर्ग-मुद्रा श्राकस्मिक नही है,
उसी तरह वेद-वशित ऋषभ नाम भी श्राकंस्मिक नही है, वह भी
एक सुदीघं परम्परा का चद्योतक है, विकास है । ऋग्वेद के दशम
मण्डल मे जिन श्रतीन्द्रियदर्शी वातरशन मुनियों की चर्चा है, वे जैन
मुनि ही है।
श्री रामप्रसाद चन्दा ने श्रपने लेख मे जिस सील का वशोन दिया
है, उसमे श्रकित/उत्कीशित ऋषभ-मूरति को ऋषभ-मूतियों का पुरखा
कहा जा सकता है । ध्यानस्थ ऋषभनाथ, त्रिशुल, कल्पवृक्ष-पुष्पावलि,
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