जैनतत्त्वादर्श | Jain Tattvadarasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
662
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(ख)
अगधद्गीता सतैर आत्मपुराण की रखना दौली को देखें ।
इन में काश्य रचना ओर विषय निरूपण पक दी प्रकार
की पद्धति का अनुसरण किया, गया, है, : इस लिये प्रस्तुत
च्रन्थ की रचनारली मे विभिन्नता होने पर भी उस की
उपादेयता मेँ कोह अंतर नदीं पढ़ता |
ग्रंथ की प्रमाशिक्ता- , ^
प्रस्तुत ग्रन्थ में जितने भी विषयों का निरूपण किया
गया है, और जिसे अंश तक उन का विवेचन किया है, थे सब
प्रामाणिक जैना चाय के भ्रन्थों के आधार से किया गया है,
और उन प्राचीन शास्त्रों के आधार के विना प्रस्तुत ग्रन्थ
में एक शत का भी उलेख नही, इ स्यि प्रस्तुत ग्रन्थ
की प्रामाणिकता मे अशुमाच्र भी सन्देह करने को
स्थान नदी ।
श्रथ की उपदेयता-
प्रस्तुतं प्रथ का रचनासमय मी एक विचित्र समय
था, उस समय सांप्रदायिक संघर्ष भाज़ कल की अपेत्ता
मी अधिक था । एक सम्प्रदाय बाला ,दुखरेद सम्प्रदाय पर
आक्षेप करते समय सभ्यता को भी अपने हाथ से खो बैठता
था । तात्पय कि उस समय साम्प्रदायिक विचारों का प्रवाह
जोर दर से बह रहा था । और कभी २ तो तटस्थ विचार
बालों की भी पगडिये उद्धाल्मी जाती थी, रेसी दशा मै
पक सुधारक धघर्माचाय को किन कठिनाइयों. का सामना
करना पड़ता दोगा, इस की कल्पना सहज. दी में की जा
सकती है । इस के अंतिरिक्त उस काल में जैन धर्म
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