कविताएं | Kavitaen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यही दूसरे पूछ, नाप लेते हैं कितना
लू देह मे बाकी होगा
यही तीसरे, श्रांक श्हे जो
माँस पेशियों मेँ है कितना अमबल--
( बिना छुट या टोये जैसे गाहक चूज़े को टोता है
यही भौर जो तिनको को लिखलाते
वेधी हं गङ्ख की ताक्नत, रिन्त बोधने गला तार
सदा अपनी गुट्ठी में रखते हैं :
यही ओर; जिनकी लोलुपता
देने को ्ामंत्रण सबको देती है,
क्योंकि सिवा इस देने के, बस उनको लेना ही लेना है ।
और यही वे थी, जिनकी जिज्ञासा
कभी नहीं होती रूपायित, मुखरित
जो अनासक्त हैं, जिन्हें स्वयं कुछ नहीं किसी से लेना है :
क्या दोगे, कितना दोगे--दे सकते ह्ो--
मुके नही, जग भर को, जीवन मर को,
प्यार ?
©
@ शरद विराम
कितने वसन्त हंसते-हंसते चद् चुके समय की सूली पर ।
परतर के रोदन हृए शान्त । समन्य
बिन्िप्त षिपिन खरिडत बह जव उटा-उखा कर ह्र गये अन
गह सके न पर नम का चन्दा, पाष््छ
हो निस्त्साह, निर्जीव, मक रह गये खड़े,
मरडलक धूलि के हुए ध्वान्त /
ल्त श्रस्थि-सन्धियो मे मेरी च्रावर्तं रक्त के चित्रलिचित-
ते खड़े, क्. हिंसाशों के अरगरित तुरंग हैँ खीच रहे
तनन्शकट / अनिमिंत प्रतिशोधों की च्रगन शक्ि्याँ रषी चील
काजल का धवट हटा दीप मुसकुरा पड़े, च्रं धियारे मे
श्रद्धालोकित वेश्या-वलयित सो रहय नगर रिजखुग्प क्लान्त /
४
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