प्रेम है द्वार प्रभु का | prem Hai Dwar Prabhu Ka

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ घ्रेम है हार प्रभु का उस आदमी की खोज में । नसझद्दीन के तो प्राण सूख गये । उसने सोचा निश्चित ही डाक हैं उसके पीछे चले भा रहे हैं । दीब।ल पर चढ़ गये हैं। उसने आखें बन्द कर ली । और जब उन्होंने उस आदमी को कब्र में जिन्दा आख बन्द किये लेटे देखा तो वे और हैरान हो गये । उन्होंने अपनी बन्दूक भर ली । वे नीचे आये और उन्होंने कहा-''बोलों तुम महा किसलिए आये हो * क्या कर रहे हो ? नसंददीन ने कहा -मरे दोस्तो, यही मे तुमसे पुछना चहता हू कि आप यहा क्या कर रहे हैं, और किसलिए आये हैं *? उन लोगो ने कहा ,-हम किसलिए आये ह? नसेददीन उठकर कड़ा हो गया और कहा कि से क्या कह आप मेरी वजह से यहा है और में आपकी वजह से यहा हू ' सारी दुनिया मयभीत है और अयर पुने आइए किसी से कि क्या भयभीत हैं तो पाइएगा कि में आपके कारण भयभीत हू और आप मरे कारण भयमीत हैं। रूस अमरीका के कारण भयभीत है, अमरीका रूस के कारण भयभीत है । पति पत्नी के कारण भयभीत है । पत्नी पति के कारण भयमीत है। और सच्याई यह है कि हमारे चित्त का केन्द्र भय बन गया है । हम शामद किसी के कारण भयभीत नहीं है-हम सिफ॑ भयभीत हूं-अकारण । ओौर सिफं अपने भय को हमं चकं सम्मत (91200812) वनति है कि इम इसके कारण भयभीत हमे इस दात से मयमीत हू । से मौत के कारण भयभीत हृ । में बीमारियों के कारण भयभीत हू । में उस बात से भयभीत है । हम सिफ॑ भयभीत हैं। हमारी आत्मा ही भय से भर गयी है। क्यो भर गयी हि? क्या रास्ता हैः मजन-कीर्तेन करे, मदिरो मे जायं, पूजा षाठ करे 7 बहुत हो चुके म जन-कीतेन । बहुत हो चुकी प्ूजा-प्राथनाएं। आज तक मनुष्यता भय से दूर नहदीं हुई । जो चीज भय से ही पदा होती है उससे भय दूर नहीं हो सकता । वह मजन-कीतेन, वह पूजा पाठ भय से ही पदा दो रहा है। बन्द्ुकें बनायें ? एटम बम बनायें * हाइड्रोजन बम बनाये ? उससे भय दूर होगा ? उससे भी भय दूर नहीं हुआ । भय बढ़ता ही चला गया। बम मय से ही पदा हुए हैं इसलिए बमों के कारण भय दूर नहीं हो सकता है । बन्दकों के कारण भय दूर नहीं हो सकता क्योकि बन्दूक भय के कारण ही पदा हुई है । आपने घरों मे तस्वीरें देखी होंगी बहादुर लोगो की तलवारें हाथो में लिए हुए। जो भी आदमी हाथ में तलवार लिए हुए है वह बहादुर नहीं है । बहू भयभीत है । चाहे सबंकों पर मूतियां बनी हों, चाहे धरा में फोटो लटकी हो। जिस आदमी के हाथ में तलवार है बह आदमी मयमीत है, वह बहादुर




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