राम - काव्य की परम्परा में रामचन्द्रिका का विशिष्ट अध्ययन | Ram - Kavya Ki Parampara Men Ramachandrika Ka Vishisht Adhyayan

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Ram - Kavya Ki Parampara Men Ramachandrika Ka Vishisht Adhyayan by गार्गी गुप्त - Gargi Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ ` ज्य य (छ) का सार है । केशव ने “रामचन्द्रिका' के पाठक को अपनी अनुपम प्रतिभा तथा कुशल काव्य-ददौली द्वारा पूर्व साहित्य से परिचित कराकर एक श्रोर भारत की साहित्यिक तथा सांस्कृतिक परम्पराभ्रों की रक्षाकीहै एवं दुसरी ओर इस क्षेत्र मे भाषां कवियों का दिशा-निर्देश किया है । प्रबन्ध लेखन में डॉक्टर श्रीमती सावित्री सिन्हा द्वारा पग-पग पर मिलने बले श्रमुल्य सुक्तावों तथा पथ-निर्देशन के कारण ही यह कार्य पुर्ण हो सका है । उनके स्नेहपुर्ण सद्भाव तथा विद्वत्ता से मुझे सदैव नवप्रेरणा तथा स्फूति प्राप्त होती रही है । उनके वात्सल्य, प्रेम तथा सहदयता से मेरा रोम-रोम प्रभावित है । उनके श्रति कृतज्ञता ज्ञापन करने के लिए मेरे चन्दो में सामथ्यं नहीं है, इतना ही कह सकता हूँ कि प्रबन्ध जिस रूप में भी बन पड़ा है, उन्हीं की कृपा का प्रसाद है । पुज्य दद्दाजी के प्रति मैं अपनी हार्दिक श्रद्धा निवेदित करती हूँ जिन्होंने श्रपने श्रत्यन्त व्यस्त जीवन के बावजूद समय निकाल कर मेरी इस पुस्तक को पढ़ने का कष्ट किया श्र अपना झाशीर्वाद भेजकर पुस्तक का मूल्य तथा मेरा उत्साह बढ़ाया है । प्रूफ संशोधन में मुझे अपने सुयोग्य छात्र श्री सूरज नारायण मंगला से बड़ी सहायता मिली हैं । श्री शम्भू दयाल यादव ने भी समय-समय पर मेरी सहायता की है। मैं इन दोनों छात्रों की श्रत्यन्त ऋणी हूँ । निबन्घ की सामग्री -संचयन में मुक्ते साहित्य सम्मेलन पुस्तकालय, प्रयाग ; पब्लिक पुस्तकालय, प्रयाग तथा मारवाड़ी पुस्तकालय, दिल्‍ली के अध्यक्षो से विरोष सहायता मिली है जिन्होंने अपने पुस्तकालयों मे यथाशक्ति उपलन्ध-अ्नुपलन्ध पुस्तकों का प्रबन्ध करके मुभे चिरकाल के लिए प्रपना ऋणी वना लियाटहै। इन सबके तथा झपने अन्य मित्रों ्रौर सहयोगियों के प्रति जिन्होनि विभिन्न प्रकार से प्रबन्ध लेखनम मेरी सहायता की है, मै साभार कतज्ञता-ज्ञापन करती हं! चिल्ली विदवविद्यालय, दिल्ली - गार्मी गुप्त गमतन्वर दिवस, १९६४




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