गीली आँखें | Geely Aakhe
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रंगर
जान निकली जा रही है अरे साहब न पूछिए और उस पर
सुमे सिगरेट के धघुये से सख्त नफ़रत है । पर कुछ लोग ऐसे होते
हैं जो हर समय अंगीठी की तरह मुँह में आग लगाये ही रहना
पसन्द करते हैं ।
उसने सामने बैठे मुसाफ़िर की ओर देखा जो सिगरेट का कश
पवीच रहा था । जिस महाशय से यह बात कही गई थी ये कहने
व के लक्ष्य को समझ गए, मुस्कराये और दूसरी बातें करने
लगे ।
सिगरेट पीने वाला मुसाफिर अपने को अँगीठी कहे जाते सन
कर भी चुप रहा । चाहा कि कह दे । हां,जी, मैं अमीर ही तो हूँ । एक
श्राग जो वर्षा पहले मेरे कलेजे में लगी थी उसे कब से संजो कर
रखता भाया हूं । अपनी आग को जलाये सुखंने में ही तो मके सख
है, वही तो मेरा जीवन है। पर कह वह नहीं सका |
सामने बैठे सुसाफिर ने जेब से अपना डिब्बा निकाला, खोल कर
दो पान रवयं खाये और दो बगल वाले महाशय की ओर बढ़ा दिये
जिन्हों ने अँगीठी कहा था अपनें सामने बैठे यात्री को । तभी सामने
से पान सिगरेट वाले ने छावाज़ लगाई तो खिड़की में मुँह डाल
उसने बुलाया-श्रजी श्रो सिगरेट वाले जरा इधर तो आना भाई ।
सिगरेट बाला श्ागया तो केदा-एक पैकट कैप्सटन श्रौर एक
दियासलाई देना ।
सिगरेट 'और दियासलाई लेकर रखली फिर जेब से पैसे निकाल
कर देते हुए उसने पू'छा--क्यों जी पटना अभी कितने स्टेंशन हैं' ।
'अरे अभी तो बहुत दूर है साहब । होगा कोई तीन घंटे का रन !'
सिगरेट बाले ने उत्तर दिया।
पैसा देते हुए वह रुक गया फिर बोला- च्छा दौ पैकट श्रौर
केदो श्रौर पैसे जेब मे रख एक रुपये की एक नोट निकाल उसने
षदा दी! सिगरेट वाला चला गया तो सामने वैठे सजन ने कदा--
पायद सारा सफर मुझे घुँआधार मँ ही काटना पड़ेगा । गाड़ी में
कहीं रौर जगह तो भी नहीं है कि चला जाऊ' ।
बातें सुसाभ्रि को सुना कर कहीं जा रही.थीं पर वदद जैसे कुछ
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