रामकाव्यधारा अनुसंधान एवं अनुचिंतन | Ram Kavya Dhara Anusandhan Aur Anuchintan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
364
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)87.811) 10111. सह सन ज कै
समचयत कं दशन होन हैं । आरम्म में अयाध्या और राम की स्तुति करके
आयवे छद तक राम कं राज्याभिषेकं की कथा वही गई है । इसके पश्चात सीठा
के मू-प्रवेश का उद्देश्य पृथ्वी में अपने अणुपरमाणुआ को मिलाकर लंवकुश वे
समान रामयशगायको को जम देना बताया गया है । दसवे छदं में उनकी सेवा
में गढ़ की नियुक्ति का कारण मक्तो की रा कही गई है । ग्यारहवे श्लोक में
राम के मंत्री और दूत हनुमान की बदना की गई है। अत में राम का गुणगान
करने वाले भक्ता को परम पट थी प्राप्ति का अधिकारी बहा गया है 1 इस
विवेचन से यह सिद्ध हो जाता है कि वस्तुत साप्रदायिक रामर्भक्ति की छदृमव-
स्थली, द्रविड देण कं उपयुक्त आलबार मत्से की मावसाषना ही है 1
वैष्णवाचार्यो की रामभक्ति
सैष्णवा के वार सप्रदाया--धी, सनक, प्रय यार सुद्र-मे राममक्तिके
सूच केवल श्रीसप्रदाय भर ब्रहासप्रलय, म ही पाये जान ह । उसका साप्रदायिक
परम्परा भी इन्ही नै कै भीत्तर पल्लवितं हू 1 प्रथम के यादि काचापर नाधमुनि
शौर द्वितीय के मध्व ये।
श्रोसप्रदाय फे श्राचार्यो कौ रामभक्ति
आवार के उत्तराधिकारी श्रीप्रदाय के आचाम हुए १ ये उच्चकोटि के
विद्धाच् होने के साय ही भक्तिरस के भोत्यभी थ । आनवाय की भाति इन्टीनि
विष्णु तथा उनके अवतारा म दृष्ण, वामने भौर उसिह के साथ 'रामावतार में
मी पनी गरू जप्या ओर तषटिपयक साहिव्यर्वना म रचि टिवाई । इसीतिए
रामभक्ता मे ये पार्पदा थे. अवतार को रूप में पूज्य हैं । वैसे श्रासप्रदाय में
ल्मोनायायण को ही प्रयुता दी जाता है, फिनतरु सीताराम की उनस एकात्मता
स्थापित कर इन उनराशय यौ दीधदर्शा भहात्मामां मे सम्प्रदाय के भीठर
'रामभक्ति के प्रति एक अदूसुत्त आवर्षण पैदा कर टिया 1
प्रम्नामृत, पु० २८५
देखिय-- वदमल--तिष्मुडि (स ० पो° ङ्च्यमाचाय}, ¶० १५४ ५७
प्रणन्तामुत्, थ ४५०
थी वप्णव संप्रदाय के एक मुख्य सिद्धात ग्रय---श्वहदृष्ह्य सरिता भें
सीताराम झोर् सक्मीनारापण शलो अर्मिध्रता दिप् मई है-
तथ्ापोप्यापुरो रम्या यत्र नारापणो हरि ।
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