चस्मदीठ गवाह | Chasmadith Gawah

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Chasmadith Gawah by रावत सारस्वत - Ravat Sarasvat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ने दो हारत॑ देंख भर श्रा छोटेगिये छोरा ने कैयों -रै! प्रौ कुतियों तो हमें निकारो हृयग्वी, कोई बीजों कूकरियो लाया ।” कवि श्रोंट र ऊपर सूर्य संगछी बाद सुणौ ! उणरो जीन चणो ही दोरो हिया, पणं जोर कांड कर--धापर बुढापो । छोरा कठै सु एक छाटी सो मुलरियो भरल उठाये लग्धौ । उभरा सग षर भ्राठा शरौड कर । कवारिय रा कोई दाति तेक नहो पृष्ठं । भरुख र कारण दंणरो कायां डण लागगौ । वौ फेर भौ दौयध्यार कतो मरतोहो धरर श्रा पदयो रयौ, पण भूख तो श्रापरै नाव सू श्रोटखीन) उणराउठम्र षग छेटग्यां । वो चेताचूक हुयोडो बासर घरा म ठबःसा खावतौ फिर्यो पण कैई लव भी लागण दिया नहो चवर फिरततो फिरतो वगेचौ श्राय दूक्यो । वगची श्रा नीवड दै कालिय वृत्त न सूत्यो देख'र उणरै पगा र घंट्या सी बंधगी । यो ्गीची प्रा पिरोछ मे देवी सो ऊभो। कार्द्ियो कुत्ती जंदके उमर मे तो करियर बरावर रो हीज हो, पर्ण खडसण कम करण र खातर प्रज ताईं दील साबत । व पिरोठ मे वंडता ही कवरियं मे ग्रोठख लियो । बॉल्या-- भाईजी ! उठ ही क्यू वर ऊभग्या आगा पवारो। डरभम छोडो, ह थार प्राो ही छोटकियो भाई कालियो हु ।” कालिय री बोली सुणर क्वरिय रे जीव में जीव धापरुंयो । वो उठ सू तिगतो त्िगत्तो वाद्य र क्न तो पटुचधो, पण धाक लर पारणे उणमू ऊभो नहीं रण्यो भ्रर तवाक खाय'र उठ हीज पडम्यो । झापर भाई से हालत दखरकाखिय रौआस्योमे भाम अ्रायग्यो । वै गढ गछ हवेत पष्या-- भार्ईजी । इया सिया ? * मरत ने दिने सात हया है हाडा रो सते सगा टटग्पौ ।'' कविभि पडय पड़ य ही बतायो 1 जितर बगेची श्राठा बॉवो रोटी लेय'र ्रोदग्यो ¡ वै दोय कुतिया ने बढयां देख र रोटी न साधी आधी कर र दॉनुवा द ब्राय हांघदी । कवरि्यि र पट में कइ सन्नवाणा पढेची जद थोडो सत वैपश्यौ! वा उठ र सावठ बठग्यो 1 कर्बोरिय री हालत देखोर काठिय वें श्रापरो मा री केंयाडी सगछी वाता या श्रायी 1 बोत्यो--* भाजी । मा कया बरती जियी बाता साची निकली या कट्टी ¢




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