गार्हस्थ्य - शास्त्र | Garhsthy - Shastr

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Garhsthy - Shastr  by लक्ष्मीधर वाजपेयी - Laxmidhar Vajpeyi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गृदस्थी का प्रारम्भ श्३ की प्रथा दो है। यदि लड़के श्रोर लड़कियों का बड़ी 'झवस्था में विवाद होने लगे, तो इस मूठी लज्ञाशीलता में भी छुछ कमी हो सकती है । वास्तव में माता-पिता का कत्त व्य दै कि; वे अपने लड़कों का विवाद छोटी अवस्था में करना विलकुल बन्द कर दें; 'और जब उनका विवाह करने लगें, तत्र स्वयं श्वपनी पसन्दगी के साथ साथ उनकी सम्मति भी 'अवश्य लें। हम यदद नहीं चाहते कि, बिलकुल दर-कन्या की. इच्छा पर दी दिवाद, छोड दिया जाय । बल्कि दम यह चाइते हैं कि माता-पिता '्पनी इच्छा के प्रधान रख कर लड़के थर “ड,कियों की सम्मति भी ले लिया करें । बुजुर्गों में की मात्रा विशेष रददतों है । युवा मनुष्यों में उतना अनुभव नहीं रददवा। अतएव सम्भव है कि युवक श्र युवती केवल ऊपरी प्रेमवश या सिर सौन्दये के देख कर ही एक दूसरे के साथ विवाह करने के तैयार हे जायें । पश्चिमी देशों में ऐसा ही हाता है; इसका परिणाम बहुत ही भयंकर दोता है। युवावस्था का प्रेम जब चल कर ढीला हो जाता दै, तम उन दृम्पतियों की गरहस्थी बहुत दी 'अशान्तिमय दो जातों दै । इसलिए विवाद करने में भा-बाप के गम्भीर अनुभव की अत्यन्त आवश्यकता दै। बे अपनी सन्तति के भावी सुख पर पूरा पूरा ध्यान रख कर वर- कन्या का चुनाव कर सकते हैं 1 हमारे समाज के विवाद-सम्दन्ध में प्रायः दो दी दोप विशेष द देखे जाते हैं। एक तो कम उम्र में विवाद कर देना और दूसरे सर-कन्या की सम्मति की परवा न करना । अगर ये दोनों दोप




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