सरल राजयोग | Sral Raajayog

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Book Image : सरल राजयोग  - Sral Raajayog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नरयन वाट अपने अपने त्यक्त क्रा अनुरीटन आवद्यकर हे । विन्तु सभी को एक केन्द्र मे जाकर मिलना हयी पडेगा। अनुप्रेरणा और चिन्ता के मूल में है कल्पना | प्रकति का रहस्योद्वाटन हम ढोगों के अन्दर ही है। पत्थर का गिरना बाहर दुआ किन्तु *' मध्याकषण ” के आविप्कार की दाक्ति हम ठोगों के अन्दर ही थी, बाहर नहीं । अति भोजन या अनदान, अधिक्र निद्रा या ब्रिकुट न सोना योगसाधन में विघ्न है| अज्ञान, अश्थिर मन, ईप्यापन, आलत्य और तीन्र आसक्ति योगाभ्यास में विज्नस्वरूप है| योगी कै छिये इन तीनों की विडाष मावदयकना है ; (१) देह ओर मन की पवित्रता | प्रत्येक प्रकार की मलिनता; जा मन को नीचे गिरा देती है योगी को त्याग देनी चाहिए । (२) धेयं | पहले अनेक प्रकार कौ आश्वयमयी ददोनादि घटनायें होंगी, पश्चात्‌ सब बन्द होजायेंगी। यही सब से अधिक विपत्ति का समय होता है, इस समय वैय धारण करना चाहिए, अन्त में सत्य साक्षात्कार सुनिश्चित है।




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