मिर्जा - बुकरात | Mirja-bukraat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि श्राप कौनसी रहस्यमयी बात कह रहे हैं ।
भिरजा साहब ने विश्वास करते हुये कहा-- ुभ स्वयं
विश्वास है कि तुम्हें ज्ञान नहीं । किन्तुं कमाल है वहं साहब-
जादी तो बेताब दै । श्रत्लाह अकबर ! क्या मान था, क्या
सौन्दर्य था, बड़ों-बड़ों को खातिर में न लाया जता था।
अच्छे-अ्रच्छे इसी इच्छा में रहते थे कि एकबार मुस्करा कर
देख ले किन्तु वह् मानिनी किसी की श्रोर देखती न थी श्रौर
भ्रब प्रकृति ने खुब बदला लिया है कि बहुत परिवर्तन दिखाई
देता है । तीन दित से न बचाव स्थूगार न पानी ने दाना ! ””
हमने खीक कर कहा--'श्राप तो शायरी कर रहे हैं ॥
कम से कम यह तो बता दीजिये कि बह है कौन ?
मिर्जा साहब ने भरांखों में आंखें डालकर कहा--“शाफ-
ताब का जिक्र कर रहा है ।”
हमने भ्राष्चर्यं से कहा-- “वही भ्राफताब जो उसं दिन
पियाज्ञी रंग की साड़ी बधि बैठी थी शौर जिसने प्रकबाल
तथा ग्रालिब की पंक्तियां सुनाई थीं ।
मिरजा साहब ने सिर हिलाते हुए कहा--हां वही जी
कुछ सोई खोई बैठी थी । वह श्रपने को सचमुच खोकर गई
है श्र भ्रपने सबसे पहले पत्र में लिखा है--
खुदा ऐसी गम गदतंगी से बचाएं
तेरी विज्म में हम तुझे भूल आए ॥।
हमने कहा--'बधाई हो मिरजा साहब ! जो श्रापको
भूल गई है भौर अब पाना चाहती है ।”
तिरं
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