विनय - पिटक | Vinay - Pitak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
624
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ७ |
४ क - डर
भाँति ही उनकी भाषामे भी न का पूरा बायकाट था, और र् को ल मे वदल देनेका रवाज न >
विरुद स कौ जगह भी श॒, तथा र के स्थानपर ल (जसे राजाका लाजा) कहना मागधी भाषाके विनेप
लक्षण थे! महेन्द्रके सिहरू-आगमन (२४७ ई० पु० )से प्राय ढाई सौ वर्ष तक न्रिपिटकके कठस्थका
भार सिहलके गुजराती-प्रवासियोको मिला था, जिनके उच्चारण मागधीसे विल्कुरू ही उल्टे ये, यही
कारण है, जो पलिबोध (-=परिवौध) आदि कुछ जव्दोको छोढ जिनमे मागधी व्याकेरणके अनुसार रके
स्थानपर छ कायम रक्खा गया, मागधीकी सभी विरोषताये दृप्त हौ गई, ओर एक प्रकारसे वतमान
पाली त्रिपिटकं मागधी न होकर प्राचीन गुजराती भाषाका त्रिपिटक हैँ ।
इसके कठस्थ ले आनेका एक ओौर प्रभाव पठा । हाँ, उस परिवर्तनका स्थान अधिकतर
सिहल न होकर भारत था, जरहोपर कि वुद्र-निर्वाणके २३६ वर्पो वाद तक वह् रहा था! यह्
प्रभाव था याद करने कै सुभीतेके लिये बहुतसे एक्से अर्थवाले पाठोको बिल्कुल उन्ही
रब्दोमे दुहुराना ।
मूल वुद्ध-वचन
त्रिपिटकमे कुछ गाथाओके प्रक्षिप्त होनेकी बात तो पुराने आचायनि भी स्वीकार की है ।
मात्रिकाओको छोठ सारा अभिधमं-पिटक ही पीछेका है, इसीलिये जिस प्रकार सुत्त-पिंटक और विनय-
पिटकमे स्थविरवादियो मौर सर्वास्तिवादियोके पिटकोके पाठकी समानता है, वैसा उसमे नही । मे अपने
दूसरे लेल महायानवौद्धधमंकीउत्पत्तिर्मे यह् भी रिख चुका ह, कि अभिधर्म-पिटकका एक ग्रथ-
कथा-वत्थु का अधिकादा अदोकके ममयमे न लिखा जाकर बहुत पीछे ईसा पूर्व प्रथम गताब्दीके
वै पु त्य वा दी आदि निकायोके विरुद्ध लिखा गया है। चुल्लवग्गके पच निका और सप्तदातिका
स्कधकोमे भी धमं (न्ल्सुत्त) ओौर विनयकी ही वात आती है, यह् भी उक्त वात्तकी
पुष्टि करती है ।
फिर प्रइन होता है, कया सुत्त-पिटक और विनय-पिटक सभी वुद्ध-वचन हे ? सुत्त-पिटकमे
मज्मिम-निकायके घोटम् ख सूत्तन्त ( ९४ )की भॉति कितने तो स्पष्ट ही बुद्धनिर्वाणके
वादके है । खुद क-निकायके पटिसम्भिदामग्ग और निहेस जैसे कछ ग्रथ तो अधिकागमे
सिफ॑ पहिले आये सूत्रोके भाष्य मात्र है । सुत्त-पिटकमे आई वह सभी गाथाये, जिन्हे वुद्धके मुखसे निकला
उदान नही कहा गया, पीछेकी प्रक्षिप्त मालूम होती हं ! इनके अतिरिक्त भगवान् वुद्ध ओर उनके
रिप्योकी दिव्य गविति्यों मोर स्वरग-नकं देव-असुरकी अतिजञयोक्ति पूणं कथाओको भी प्रक्षिप्त माननेमे
कोई वाधा नही हो सकती । इन अपवादोके साथ सक्षेपमे कहा जा सक्ता हे, किं सुत्त-पिटकमे
दीघ,मज्जिम,सयुत्त, अगुत्तरचारो निकाय, नथा पांचवे खुहक-निकायकेखुहकपाठ, धम्मपद,
उदान, इतिवु त्त के, ओौर सृत्त-निपात यह् छ ग्रथ अधिक प्रामाणिक ह । वल्क खुहकं निकायके इन
प्रथोमे अधिकतर पहिले चारो निकायोके ही सूत्रो और गाथाओके आनेसे, तथा कितने ही एतिहासिक
नेखोमे चतुनिकायिक जव्द जनेमेतोदीध, मन्निम,म युत्त और अगुत्तर इन चार निका
योको ही वह् स्थान देना अधिक युक्तियुत्त मालूम होता है । इन चारोमे भीमन्किम-निकाय
अधिक प्रामाणिक है ।
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` महावम्भ, महाक्लन्धककी अदट्ठकथामे नेरजराय भगवा आदि गाथाओको पीछे डाली
(=पच्छा पक्लित्ता) कह गया है ।
*गगा-पुरातस्वाक पृष्ठ २१० ।
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