अमरीका में सहकारिता | Amarika Me Sahakarita
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सघर्षमय ससार {९
व्िनान समस्त मानव-जति कौ भलाई के लिए समुद्र के पानी से अपरिमिते
शिति उत्पन्न करने का वचन देता है उसी विज्ञान चे एसे जस्त्रास्नौ का
निर्माण किया है जो देशी कौ सामूहिक हत्यागौ का कारण भी वन सक्ते हं 1
आज तो हालत यह हो गई है कि दुनिया के सभी स्त्री पुरूष ओर वच्च
हर रात इस आशका को मन में लेकर सोते है कि दाक्तिशाली स्वर से सजगं
दो देशों में कही युद्ध न छिड जाए। इसका कारण व्यक्ति जानता है और
ह वह कि अमरीका ओर रूस के पास एसे आयुध ह जिन्हे यदि पुरे पैमाने
के युद्ध में प्रयुक्त किया गया तो वे पृथ्वी के समस्त जीवे धारियौ का अन्त
कर सकते हूं। ऐसी अधवा इससे मिलती-जुल्ती सम्भावना आज से पहले कभी
सीनही थी ।
विगत आधी चतान्दी मे, विदोप रूप से पिछले पच्चीस वर्षो मे, तकनीक,
भौतिक विज्ञान, जीवन के सभी विनुद्ध भौतिक क्षेत्रो ओर युद्दास्वो के निर्माण
में जो प्रगत्ति हुई है वह सर्वथा चमत्कारिक ही है। लेकिन इसकी तुलना
में मानव-सम्बन्धों, सामाजिक विज्ञान, आधिंक, राजनतिक एव सास्कृतिक
सस्थाओ के विकास ओर नान्तिके निमाणमे जौ प्रगति हुई है वह खेदजनक
खूप से मन्द रही है। समाजगास्तरी इमे सास्कृतिक पिचछडापन' कहते हं; ओर
यह सास्कृतिक पिछडापन ही तो हमारी मुख्य समस्या है।
वड़े-वडे नगर,बडे-वडे निगम, वडी-वडी व्यापार लाए, वड़-वडे सगठन,
वश्ी-वडी सरकार और बड़े-बड़े वम हम पर हावी हं ओर हमे चारी ओर
से षरे हुए हूं। हम भयभीत ही नहीं; स्तम्भित और जड भी हो गए हे।
हम में से अधिकाद नितान्त हताथ होकर यह कहते है कि “में इस सम्वन्व
में कर ही क्या सकता हूँ ।” कितने खेद की वात है कि हम विभिन्न राष्ट्रा
ध्यट्यौ के पारस्परिकं दौर पर अपनी आना छगाये रहते है। और उससे
भी अधिक वेदक वात तो यह है कि हम उनके साथ सवाददाताय। भौर
फोटोग्राफरो की वडी-वडी पल्टनं भेजते हं । क्योकि नान्तिक्ती हमारी समस्त
आद्याएं उन 'वठे जादमियो' के हि्तिद-च्त्तिषव से वोट नए चन्द सयवा वाक्यो.
उनकी नपी-तुलो मुस्कराहटों, यहाँ तक कि उनके रवासोच्छवासो पर ढि
राप्ट्राध्यक्षों के पारस्परिक चार्त्तालापो के योवल
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क.
पैर बटकी रहती + , पट
भ्वर् उट रह्मा । साष्ट
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