सुकुमाल-चरित्र | Sukumala - Charitra

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Sukumala - Charitra by नाथूलाल जी देशी -Nathoolal Ji Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीसुकुमाल-चरित्र कि नंत गुण तिनका समुद्र है; भावाथ र्न दु स्भोः वः कल्यानकका नायक्र, अनंतगुणनिक समुद्रः अन्तिम “तीथकर- कं आचायने निर्विन्न झास्त्रकी सपि < थि आदि विख नमस्कार किया है, वद्धं मान तीथक्ररंकरि ` प्रकाद्या सत्याथ धमः तीन जगतकी लक्ष्मी; अर सुखकी और. इस पंचमुकाछ दिखें मुनि अर्जिका श्रावक श्रा (न्करि- अपसरण ' किया प्रवते है, अर पंचमकारके अंतपर्यत रहेगा, जो वचन रूप कि- रणनिकरि सर्वदा एकान्त मतरूपजे अज्ञान सोहौ अंधकारका समह्‌ ताहि मूर्त उच्छेद करि भव्य जीवनिके मोक्षकी प्राप्तिके अथि रत्त्रय रूप मुक्तिका मारग प्रगट दिखाया, श्रो करिये सोभायमान सस्यगज्ञानको बद्धिरे देवनिने जाका वद्ध मान नामः प्रसिद्ध किया, अर अंतरंगवियें क्रोघादिक वेरीनकें जीतवेतें वीर अथवा महावीर ऐसा नाम पाया, अर स्वयं कहिए आप ही परोपदेशविना आापूं आप सत्यार्थ मागकू जान्यां, तातं सन्मति. ऐसा नाम कहाया, या प्रकार वद्ध मान, वीर, महावीर, सन्मति. च्यार नामके धारक, धर्मरूप चक्रवतिं पदके नायक, तरिजग- गतपुल्य अंतिम तीथकरकू में नमस्कार करू हं, जो भगवान शठ ध्यान रूप खाङ्गकरि वरजोरीतें. घातिक कर्मरूप वेरोको नाझः करि रोकालोक प्रकाशक केवल ज्ञानदं पाय चतुथं कारुको आदिः विख भोले आर्य पुरुषनिके कल्याणको -सिद्धिके अर्थं सुनि खा- कके भेद्‌ करि दोय प्रकार धर दिव्य ध्वनि करि उपदेस्या एेसा प्रथम तीर्थकर बृपभदेव ताहि- नमस्कार करू' हूँ, कैसा है धर्म ?




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