साहित्य, साधना और समाज | Sahitya Sadhana Aur Samaj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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- “ साधू भयातो क्या चया माता प्री चार),
वाहूर मेस वनाप्या भीतर नरौ नेगार॥
सो प्रकार श्राटम्बर् कभी उन्होंने तीर विरोध किया
मूड मृदये हरि मिल सच कोई सेय मृडाय ।
यार बार के मू इ़ते भेड न वुठ जाय ॥
साई से साच रहो, सट साच रहाय ।
मायं लेन के रप, नाव घुरड़ि मुदाय ॥।
णारर्विः कष्ट प्रर सपनतय भी वकार र यरि उनने मन प्ररि्डत नही
होता । घरीर की साधना, बिना सन को वध में व हो सफतो 1 लोग
व्रत-उपवान करते ह, पर पौध, लोग, प्यान्द्रप प्रादि के भाव दूर नहीं होते
तो ऐसे न्तो से कोई लाभ नहीं । कायीर में लिखा दें कि यह सांप को ने सार
कर उसकी चाबी पीटना है, £--
वाचा सूट ववर, सपन मारा उव |
मरप वाव ना उरते, सपि सवन फो वाय ॥।
नानक ने भी श्रास्तरिक शुद्धि के व्रिना, वरन, नियम, तौव न्रादि को
व्यर्थ बताया हई -
वरत् नेम तोर्थ अमे, चद्टुतरा वोचति फूड ।
श्रतरि तोरथु नानषठा, सोधन नाही मृड ॥
धमं ्रौरस्माजदोने मे भेदभाव टालनेवाली त्वा श्रय श्रीर् दिखा
की बातो का सत्त कवियों ने तीन्र विरोध किया हैं । थे माला लेकर उस जाप
का विरोध करते हू, जिसमें कि मन इधर-उधर फिरता है म्रौर उस नमाज की
भी निन्दा करते हूं जो हृदय के कपट-भाव शरीर जीवर्नहिसा श्रीर हत्या को टूर
1 कर सकती हैं । ईश्वर को मन्दिर, मस्जिद या मूर्ति में ही केन्द्रित क
केवल वही जाने पर धर्म-भाव को मन में लाना श्रीर श्रन्य स्थानों पर झत्या-
चार श्रौर पाप करना, सत्य-व्यवहार से टूर है । यथार्थ में ये धर्माउम्वर हमें
भूठा मार्ग बताते है । दाढू से कहा दे --
। यह् मसीत, यह देहरा, सतगुर दिया दिखावर ।
भीतर सेवा वन्दी, बाहुरि काहे जार 11
प्रत. प्रान्तरिक चेतना श्रीर विकास का ही महत्व इन सत कवियोकी
दृष्टि में है।
इसी प्रकार वे हिन्दू-मुसलमान, न्राह्मण-थूद्र आदि का भेद भी बनावटी
मानते है गौर यह श्राइम्बर की पराकाष्ठा हैं । जब तक दारीर में प्राण है
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