क्रान्तद्रष्टा श्रीमद जवाहराचार्य | Krant Drastha Shrimad Jawahar Chariya

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Krant Drastha Shrimad Jawahar Chariya by शांता भानावत - Shanta Bhanawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महावीर की उस परस्परा को सुरक्षित रखने का एक. भव्य रूपक है, भव्य ग्रादशं है । जब तक इन्सान श्रपनी स्वीकृत मर्यादाओं में सुद़ रह कर श्रपने जीवन को नहीं संभाल पाता है, तब तक वह श्रपनी ज्ञान रश्मियों को भी दूसरों को दे नहीं सकता, श्रौर देने की स्थिति में कदाचिंतु रहे भी सही तो वे बिखर जायेंगी, स्वयं भीं स्थिर नहीं रह पायेगा । सीमाश्रों और मर्यादाशं में जिस वस्तु स्थिति का प्रतिपादन होता है वह वस्तु स्थिति स्व-पर के लिये हितावह होती है । आप वर्तमान में प्रत्येक वस्तुतत्व को इस परिवेश मे देख सकते हैं । ः घेरे के भीतर से रोशनी : जहां विजली के वस्व से प्रकाश प्राप्त कर रहे हैं, बल्ब की सीमा है, उसका घेरा है, घेरे के भीतर से ही वह रोशनी दे रहा है । यदि घेरा टूट जाता है तो श्राप विद्युतु की रोशनी प्राप्त नहीं कर सकेंगे । घेरे में सुरक्षित रहते हुए वल्व प्रकाश दे रहा है । सये अ्रपनी सीमा की स्थिति में रह कर श्रनादि काल से विश्व को, प्रकाश, दे रहा है । कुदरती, तत्त्वों के साथ-साथ संत जीवन भी कुदरती तत्त्वों की तरह एक झ्रनूठी देन हुमा करता है । आ्राचारयेदेव ने भी अपनी साधु मर्यादित दशा को सुरक्षित रखते : हुए, श्रक्षुण्ण रखते. हुए सभी दिशाश्रो में प्रकाश दिया । व्यक्ति, समाज, राष्ट्र शर' विश्व को, इस उदात्त धमं का, ज्ञान रूपी रश्मियों का प्रकाश, स्वयं क्रो सुरक्षित रखते हुए द्विया । उन्होने श्रपनी सुरक्षित स्थिति को खतरे में डाल. कर जनमानस को प्रकाश देने का कतई विचार नहीं किया । जव साधुवगे का पहला सम्मेलन अजमेर में हुमा उस समय बहुत से गण्यमान्य व्यक्ति एकत्रित हुए ये । ४० हजार के लगभग जनता एकत्रित थी । आचार्य- देव को अपने श्रमुल्य विचारों का प्रकाश करना चाहिये, ऐसी लोगों की इच्छा थी । लेकिन जव . व्याख्यान देने का प्रसंग्‌ आया तव भ्राचायेदैव ते साफ कहा कि मैं इस माइक के.माध्यम से श्रषने विचारों.को नहीं रखना चाहता ह्‌, यह साधुजीवन की सीमा को तोड़ने वाला है । मैं श्रपन्ी सीमा में श्राबद्ध रह कर ही जनता को अपने विचार देगा चादतता हूँ । उस समय की जनता को सव तरह के लोगों को श्रवण करने को मिल रहा था, कुछ लोगों का श्राग्रह था कि अ्राचा्ंश्री श्रपने विचार माइक के माध्यम से रखें । लेकिन श्राचार्यश्री श्रपनी शिष्यमंडली सहित हजारो की. भीड को एक तरफ़ करते हुए, श्रपने स्थान पर पहुंच गये, लेकिन श्रपनी मर्यादाश्रों को लांघ करके उन्होंने ज्ञान का प्रकाश नहीं दिया । ९५




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