भगवती कथा खंड ५० | Bhagvati Katha Khand-50

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Bhagvati Katha Khand-50 by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवान्‌ को शग्रपूजा १५ मन्दी गहसे षुदधाया था, वे भी सव्र विर्लाकर ' कहने लमे- “भगवान्‌ की टी सयं प्रथम पूजा होनी चादिये । इस कोलाष्टल में कोई किसीकी सुनता दी नथा, जो राया इस प्रस्ताव का विरोध रना चाहवे थे, उनका बहुमत को देर इष कोल्ल में साइस ही न हुमा । वे चुपचाप अपने 'ासनों पर बैठे रहे! सर्वं सम्मति सम कर घर्भराल ने सददेव से पूजा की समस्त सामग्री श्यामसुन्दर के सम्मुख रखने को कहा । पाँचों भाई एक स्थान पर जुट थाये । द्रौपदी ज्ञी घर्मराज्त की व्गल्ष में 'दी पेठी थीं 1 धानं हम थपने हृदय घन यदुनन्दनकी सवके सम्मुख श्रद्धा सदित पूजा करेगे ख यात के स्मरण भाते दी सवके सव सेमाध्चिन दो उठे | घर्मराज तो प्रेम में ऐसे विहल हो गये, कि चन्दें शरीर की भी सुधि नददीं रदी । छुरत के समस्त सम्बन्धी भगवान्‌ की पूजा करने को एरुच्रित दो गये थे। महाराज के मंत्री, पुरोत सुद्टद तया अन्यान्य परिवार वलि भी यैठेे। उस समा में शिव, श्रद्मा, इन्द्रादिक लोकपाल 'झपने गणोंके साथ पिराजमान थे, गन्घर्व, विद्याघर, सर्प, यक्त, रास, मुनि, फिनर, परी तथा सिद्धधारणादि समी समुपस्थित ये 1 भगवान्‌ की पूना देखकर सभी प्रमुदित हो रहे थे । भाइयों की सद्दायता से धर्म- राज ने प्रमुके पादों का प्रक्ालन किया और उस झुवन पावन यादोदक फो भरेम पूर्वश शिरपर चढ़ाया । फिर अघ्यं छाचमनीय, स्नानीय जल देकर यज्ञोपवोत सहित दो रेशमी पीवाम्बर तथा बहुमूल्य झामूपण चन्दे अंस क्रिये । चंदन, 'अच्तत, पुष्प, पुष्प- माला, धूप, दीप मैवेययादि से उनकी विधिवत पूजा की । उस समय घर्मराज की विचित्र दशा थी । प्रेमके कारण वे अधीर ही रदे थे । कर थर थर कॉप रहे थे । पुरोहित दढ वस्तु उठाने कौ कहते कुदद चठा लेवे । ये चंदन लगाने को कहते जाए धत्तत छींटने लगते । वे श्यामसुन्दर फे विसुवन रूम को नयत मर के




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