श्री महारणाप्रतापसिंह | Shree Maharanapartapsingh-chritam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( राभस्थानवर्णनमू ) १९
यन्त तेन तथता जनाना चेतांति निर्विनरष्येवान्
यपाहि रानम्पानवर्तिन झप्रिया सीयोंदार्योदिगुणशाडित
तयेव तद्रमण्योऽरि. कंबहुना-रनपृलज्त्रियरमणोनां समा रमण्य
इह नगते क्वारि न सन्तीति निर्किशिद्सू, दय थे रामस्था-
नरमणीगुणान् सविस्तरमप्रे व्णेयिध्याम .
(५)
वाधका › रानम्पानवामिना सप्रियाणा स्वभाव ससेपेण
प्रदर्शित . अपना तत्प्रतिषर्तीमृतानों यदनानां स्वभावपरिचियं
कारयामि.
एते च व्यवहारमिेण अस्या मारतमुषि बहो दाटान् पमौ.
टन, ते श्र स्वदेश नानाविपद्धि परिपूर्णमवलोतयास्या मृत्यु
छोकम्वर्सीयमाणाया मारतमुवि स्थानृमिच्छन, स्थिताश्थ मेतुमंपि,
यदा प् इमे पवना इषा मारतभूवं भेत भ्रामरतन्तं तद्रा प्राम
सएव क्षत्रियरामा पर व्याानन्. ताश्च येन केनापि प्िपेण
नित्वा यवनिरिये मूरात्मपनतछनेति सरऽपीतिहाप््यय परन्ति.
हसत् यथा क्षपियरानाना स्वभावे मया निवदिनसम्तमेव य~
नानामपि स्वमा वमैनीय एव.
वाचन १ये पटु रञपुतकषतरियतु शीरमेदार्यप्रमनयों गुणा
मया षर्णितम्तिषां य्नेष्दभाव एवामीन्, अग्मिन् विषयेऽ
कानिनिदुदाहरणानि परदरीयामि. तत्र कतप्नतायाम्--
यो हि प्रथमों दिछीशरस्य पुथ्वीरानस्य जेना सिमनीपति
शहाबुद्धीमनामा यपनाधिए से सप्तकृत्वनतन दिछीधरेण परा-
मित्य बन्दीकृतः संविन विज्ञप्ते तेन परमीदार्यसरनिना मुक्त...
User Reviews
No Reviews | Add Yours...