श्री बयालीस लीला | Shri Bayalees Leela
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)® बृन्दावन सत सीलं ®
१३
बृन्दावन घुख रंग को, कां न -पायो योर ॥
दुर्लभ दुर्घट सबनि ते, बृन्दावन निज भौन ।
नवल राधिका कृपा विनु, किध पे कौन ॥
सवे भग युन दीन दों, ताकौ जतन न कोइ ।
एक क्सोरी छपा तें, जो कहं दोह सो दई ॥
सोर कृषा अति सुगम तर्हि, ताकौ कौन उपाव ।
चरन शरन द्रिवश की, सहजदि वन्यो -वनाव ॥
दरिविश चरन उर धरनि धरि, मन वच के विवास ।
कुँबरि छुपा हू हे तवदि, , भरु वृन्दावन वास ॥
प्रिया चरन वल जानि के, बाद दिये हुलास ।
तेदैऽर मेँ आनि है, वृन्दा विपिन प्रकाम ॥
केषर किसोरी लादिली, कस्नानिधि सुङ्कमारि ।
रनौ बृन्दा विपिन कौं, तिनके चरन सँभारि ॥
हेम मई वनी सज, रतन खचित वहु 'रग ।
चित्रित चित्र विचित्र गति, छवि की-उठति तरग ॥
वृन्दावन कलकनि कमक, फूले नेंन निहारि
रवि शशि दुतिधर जँ लगि, ते सव डारे वारि ॥
वृन्दावन दुतिप्च की, उपमा कौं कषु नार्हि ।
कोटि फोटि वेय ह, तेहि सम कटे न जादि ॥
लता लता सव कल्पत, पारिजात सव फल ।
सदज एक रम रहत दे, फलकत जगना एन ॥
कज कुज छति प्रम सो,कोटि कौटि रति मन।
दिनि संभारत रहत दै, भी बृन्दावन पेन ॥
पाठान्तर हित पर मिञ उर परनि धर ।
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