गान्धिचरितम | Gandhicharitam

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Gandhicharitam by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीगान्धिचरितमहाकाव्यप्रकाशने कृतसुदढसाहाय्यस्य भौविडलावंशस्य प्रशस्तिः । श स्वगेपरतिच्छायमनत्पमन्यगुखलया या नगयी पिलानी स्वाभाविक वैरमपस्य हार्दाच्िदया वसन्त्या च गिरोपपन्ना ॥ सज्ञस्थान की पिलानो नगयै समी श्रेएठ गुखो का भवन ओर स्वम की प्रतिमूर्ति है । उस नगरी पर नुराग के कारण श्रपते तैस वैरभाव को दूर कर लद्मी चौर सर्वरी दोनों एक साथ दी वदँ निवास कती ई! र तामध्यवार्सीन्मतिमानुदारैगुी: स्वकीयैजंगति प्रतीतः । र्ठ सुिद्ान्‌ शिघश्ब्दपूर्वो नारायणो धम॑व्रिदा वरि ॥ ( पहले किसी समय ) उस पिलानी मे सेठ श्रो शिव्रनारायण दास चिडला जो निवास करते थे । वे बडे ही मतिमान; विद्वान अपने उदार गुर्णों से ससार मे सुपरिचित एवं धर्मवेत्ताओ में सर्ोत्तम थे । ३ तसादमूच्छीवलदेवदासो तर्येव साक्ञाद्रविन्दनाभात्‌ । ' मान्यः सता यो विडल्लान्यत्रयपद्याशुप्राज्ली तनयः सु वीक्ष. ॥ जेषे साक्तात पद्यनाभ विष्णु से ( उनके नाभि-कपमल पर ) ब्रह्मज धपपन्न हुए थे, वैसे ही उन ( सेठ श्री शिवनारायणुदास विदल ) मे




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