तुलसी भूषण | Tualasi Bhusan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शा!
तुलसी भूषण' का प्रस्तुत संस्करण चतुर्थ प्रति को मूलतः आधार मानकर
उपस्थित किया गया है। अन्य तीन प्रतियों के पाठ में केवल स्थानीय प्रभावों
का ही अंतर देखने में आया। यह ध्यान रखा गया है कि तुलसी भूषण का मूल
अविकल रूप में सामने आ जाए। ' कुवलयानंद' और संस्कृत के अन्य ग्रंथों के
श्लोकों की ब्रजभाषा टीका को विस्तारभय से छोड़ दिया गया है। रसरूप की
मूलकृति को यथावत् लिया गया है।
तुलसी भूषण कौ अन्य प्रतियों का विवरण नहीं प्राप्त हो सका। इन चार
प्रतियों में लिपिकों के भाषा-ज्ञान और लेखन की परंपरा के कारण छोटे-मोटे
पाठांतर दिख्मई पड़े, पर वे नगण्य थे। इसलिए पाठान्तर नहीं दिए गए। संवत्
1856 से संवत् 1920 तक की उपलब्ध प्रतियों मे लेखकों ने सुलेख पर विशेष
ध्यान दिया टै। इससे सभी प्रतियों का पाठ सुपाट्य हे।
' तुलसी भूषण कौ रचना का उदेश्य
रसरूप ने स्वयं ' तुलसी भूषण' के प्रारंभ में रचना का उदेश्य स्पष्ट कर्
दिया है। तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में अलंकारों को छिपा रखा है, कवि के
हृदय में उन्हें प्रकाश में लाने की इच्छा हुई। सर्व गुणोपेत .तुलसी साहित्य में से
दीपक लेकर दिखा देने का उन्होंने प्रयास किया। कवि की स्पष्टोक्ति है कि उसने
लक्षण ओरों से लिए ओर रामायण को मुख्यतः ओर तुलसी कं अन्य ग्रंथों को
गोण रूप से लक्ष्य ग्रंथ बनाया -
श्री तुलसी निजभनित मेँ भूषण धरे दुराय।
ताहि प्रकासन कौ भई मेरे चित में चाय।।
सो कविता सब गुणसहित है जग विदित सुभाय।
दीपक लै रसरूप ज्यों दिनकर दियो दिषाय।।
रामायण मेँ जो धरे अलंकार के भेद।
ताहि यथामतिबृद्धि कं रचत प्रबंध अखेद।।
ओरनि कं लच्छन लिए रामायण के लच्छ।
तुलसी भूषण ग्रंथ या विधि कियो प्रतच्छ।।'
पमाया ामामकयनसकम0०७००००१
1 तुलसी भूषण - प्रांभिक दोहा-2 से 5 तक।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...