पंतजी का गद्य | Pantji Ka Gadya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दौ गद्य का रूपात्मकं विकासि रौर पंत का परिदान २३ सयत्न है, यथा--“कुछ हुकुम जारी करने के चास्ते मोफसील कोट अपील के साहैव लोग के नाम पर सदर दीवानी श्रदालत में जारी होय 1” तत्कालीन हिन्दी पत्रों ने गद्य के विकास में उत्लेखनीय योग दिया है--कविवचन-सुधा, उदण्ड मार्तण्ड, भारत- मित्र, हिंदी प्रदीप, विहार-वन्धु, बंगदूत, सदादशं, प्रजाहितैपी, घर्मात्मा, बनारस, अखबार, हरिदचन्द्र चस्द्रिका, उचित वक्ता, लोक-सित्र झादि में इसी प्रकार के स्फुट प्रयास हैं। इनका एक उद्ध रण द्रष्टव्य है--कहते हैं कि बादशाह गरदी के रीले में एक श्र बहुतेरे आदमी मारे गए थे ।* समाज-सुघारकों में कुछ अन्य विशिष्ट व्यक्ति (जैसे राजा राममोहनराय, सरसैय्यद अ्रहमदखां झादि ) के प्रयास भी इस दिशा में सहायक सिद्ध हुए हैं । वेदान्त के श्रचुवाद श्र सम्पादन में उनका एक उद्धरण विचारणीय है-- “वोह सराय में मिलने को भ्रौर एक-एक का नजर एक-एक को दिखलावने को 1“ इसी वीच गार्सादतासी की इतिहास-कति प्रकाशित होती है। वीम्स श्रादि विद्वान हिन्दी को रूदिवादी सिद्ध करके उदू का समर्थन करते है और एफ० एस० गाउज़ तथा राजा शिवप्रसाद, सितारे-हिन्द, संस्कृतनिष्ठ शैली का विरोध करते है -- “जव तक कचहुरी में फ़ारसी दरफ़ जारी है, इस देश में संस्कृत शब्दों के जारी करने की कोशिश वेफ़ायदा होगी ।”* राजकीय प्रभाव में वे उठ पंथी बनकर हिन्दुस्तानी का प्रचार करते हैं । गार्सादतासी साम्प्रदायिकतावश इस भाषा को श्राघात पहुँचाते हैं। राजा साहव की मापा-नीति यद्यपि उस युग के लिए उपयोगी थी श्रौर आज की माँग को देखते हुए भी उसमें दूरदशिता थी, पर इस समस्या को लेकर भारतेन्दु युग में एक विचित्र साहित्यिक कलह उत्पन्न हुख्रा । हरिख्चन्दर मगजीन के प्रकाशनके सायही दन्द का समारम्भ हुआ । श्राचायं ुक्लजी के मतानुसार--भापा के सम्बन्वमे इस समय लोगों की फिरसे श्रांखे चुलती ह । रजा लक्ष्मएसिह्‌ का श्रभिज्ञान शाकुन्तल श्रनुवाद विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली का प्रयोग है । फलतः उङ्‌ झौर संस्कृत दाब्दा- वलियों का संघपं सम्मुख श्राया । राजा शिवप्रसाद की शब्दावली के वाक्यांशों में जहाँ उर्दवीपन था, राजा लक्ष्मणसिंह की भाषा में विदुद्ध संस्कृत के भाषा-माधुर्य के साथ- साथ श्रागरे की बोली काप्रभाव था ! अन्य पुराने लेखकों में ब्जभापापन श्रौर पूरवीपन था। भाषा का निखरा हुमा शिष्ट सामान्य रूप प्रथम बार भारतेन्दु की भाषा में प्रकट हुग्रा जो राज की लेखन-शैली का झादर्श है । हिन्दी-गद्य का यह निर्माण-काल से भ्रपना ऐतिहासिक महत्व रखता है । आधुनिक गद्य-शिल्पों का विकास क्रमिक शूप से कई झ्रायामों में होता झाया है । भार- तेन्डु-युग -का योजनावद्ध प्रयास इस निर्माण की दृष्टि से विशेषत: श्रेयस्कर है । १. पं० चर्द्रबली पाण्डेय--हिंस्दी गद्य का निर्माण, पु० ४० ' २. चिजेन्द्रनाथ बनर्जी--हिन्दी का पहला समाचारपन्न, विशाल भारत, १९६४१ ३. राजाराममोहनरायं कौ हिन्दौ-विश्ाल भारत, दिसम्बर, १६२३ प° ३७१ ४. साजा क्ञिवप्रसाद सितारे हिन्द--हिन्दौ साषासार, पु ५६




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