पत्ररियाँ | Patrariyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लाये । उस्ते तगा, जैसे रसोइपे ने उम पर पेगाव कर दिया है।
पर दिढकना लौट जाना नहीं होता । हम समनभते हैं ठिठकनेवाले क्षण
जीवन के निर्णायक झण होते हैं, गाड़ी का गाँटा थदलनेवाले क्षण । पर ऐसा
मुए नहीं है। यों तो कोत्ट्ू गये बैल भी घलते-चसते ठिठक जाता है, रफ
भी जाता है, पर मुड़कर कभी नहीं घलता 1 केशोराम भी दफ्तर में लोट
भाया था प्रौर पुर्सी पर ढेर हो गया था।
सब दोप इस की पंतलून कप था । सब दोप एम० ए० यी डिग्री का था ।
वरना दलास दुनीचन्द बयों पामी-पानी नहीं होता । काली टोपी पहने भर
छोटी-सी यही बगल में दवाये दुनीचन्द कट में सेठ की दहलीज़ पर जा
चेठता है। सेठ की रुयाई उसे नहीं चुमती । कोई बहुत रुसा बोले, तो
दुनीचन्द जेच में में तम्वायू वी डिबिया भौर चूना निकालकर, तम्बाकू की
चुटकी फाँक लेता है । तम्बाफू की चुटको में सब तिरस्कारों का डक टूट
जाता है। वह कटरा राघोमत में से निकलने के स्वाव नही देखता !
दोपहर हो चुकी होगी । बढ़े साहब से मिलते के भ्रभी तक कोई सासार
'नेज्र नहीं भा रहे थे । वस्वई का सेठ जीमकर लौटने के बाद सीधा साहिब
के दफ्तर में चला गया था घौर भपना पार मंयूर करवाकर, उघर से ही
बाहर चला गया था । तभी केशोराम बैठा-ब्रैठा स्वप्न देसमे लगा । सभी
एजेण्ट दिवा-स्वप्न देखते हैं । सभी वे सोग, जो प्रपनी पटरी से उतरे होते
१ 1 जिनकी एक टाँग कटरा राघोमल में, तो दूसरी लाजपतनगर में होती
उसने देवा कि वह रेलगाड़ी में बैठा है, उसके पास टिकट भी है, पर
कारखाने का बड़ा सेठ उसकी सीट पर श्रपना विस्तर विछाना चाहता हैं
भीर उसे दिव्ये गें से निकल जाने की कह रहा है। वह कंशो राम को नहीं
पहचानता मगर केशोराम ने उसे पहचान लिया है। केशोराम उसे श्रपना
हरे रंग का टिकट दिखाता है श्रौर पीले रंग का शिजिवेंशन टिकट, जिस पर
लाल रंग की रेखा लिंची है | सेठ की ठुडुडी पहले से रयादा चौडी हो गयी
शौर उसके गाल लटक झाये हैं । सेठ हाथ चमकाकर उसे निकल जाने को
कहता है, मगर केशोराम देढा होकर खड़ा हो जाता है मौर वर्य के डण्डे को
'पकड़ लेता है। प्रेम बादू पहुँच जाता है भ्र भोजनालय का महाराज भी,
और दोनों उसे धक्के दे-देकर निकालने की कोशिश करते हैं। वह डण्डे से
पटरियाँ / १७
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