मेरी जीवन - गाथा भाग - 1 | Meri Jeevan Gatha Bhag - 1

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Meri Jeevan Gatha Bhag  - 1  by गणेशप्रसाद जी वर्णी - Ganeshprasad Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १९) स्वर्गीया जमती बस्सोदेवी ; सौमाग्यसे आपको धर्मपत्नी भीमती बस्तीदेवौ भी भापके स्वभावके अनुरूप मिलो थीं और प्रत्येक धार्मिक कार्यमें आपको उत्साहित करती रहती थीं । खेद है कि गत १८ जून १९६६ को आपका समाधि पूर्वक स्वर्गवास हो गया । आपको कैसरकी बोमारो हो गई थी, जो लगमग एक वर्षतक रही ओर अन्तमें वही उनकी घातक हुई । लालाजीने अच्छे- , अच्छो डाक्टर्ोते उनका इलाज कराया भौर अनेकविषं उपचार किये । पर उन्हें कराल कालये बचाया न जा सका । आपके वियोगसे लालाजी- को असष््य दुःख हमा । पर आपने अपने विवेक, शास्त्र-शान ओर धेयंते उसे सहन किया । श्रोमती वस्सीदेवीजी बड़ी बामिक, दयालु, सदुदय और उदार नारी-रत्न थीं ) अपनो दक्‌ पुत्रो सौ, सुहीा देवी, उनके बच्चों और दामाद बा० जानचन्द्रजी पर तो अपूर्व स्नेह रखती हो थीं, अपने अधोन नौकर-वाकरों, गरोब माई-बहिनों और अनाथ बच्चों पर मी उनका सदा स्नेह और करुणाका प्रवाह प्रवाहित रहता था । जैसा कि ऊपर कहा गया है कि आपके पिंता आ० छाजूरामजो थे, जो हिसारमें असिस्टेष्ट स्टेशन मास्टर थे और जो रेवाड़ीके निवासी थे । आपके दो भाई ओर एक बहिन हैँ । भाईमोंकि नाम हूँ--१. ला० मुझा- लालजी, २. ला० शीतलप्रसादजी और बहिनका नाम है--धोमती कलावतोजी । आपका जन्म पोह बदो ८ वि० सं० १९६४५ में हुआ था और स्वर्गवास भआषाद़ वदी १५ विण सं० २०२३ ( १५ जून १६६६) को हो गया । छाक्ाजीका औदाय : लाला फिरोजीलालजीने उल्लिखित लोकोपकारक कार्योके अलावा अभी हालमें ४ जनवरों १९६७ को अपनी घर्मपत्नीकी स्मृति में 'बस्सो देवी जैन चेरिटेषक् अस्पताल' की दरियागंज २१,दिल्‍लो में स्थापना की है । इसके साथ ही इस 'मेरो जोवन-गायथा प्रथम भाग' को ३०० प्रतियोंका प्रकाशन+




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