महाभारत | Mahabharat

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Mahabharat  by हनुमानप्रसाद पोद्दार - Hanumanprasad Poddhar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६४२२ एवं नरेदाकी बहन हैः जो सदा भगवान्‌ श्रीकृष्णसे टक्कर ठेनेका हौसला रखता था ॥ १२ ॥ इयं च राक्षो मगधाधिपस्य सुता जरासन्ध इति श्रुतस्य । यवीयसो माद्रवतीसुतस्य भायौ मता चम्पकदामगौरी ॥ १३॥ साथ दी यह जो चम्पाकी मालके समान गौरवणवाली सुन्दरी बैठी हुई है: यह सुविख्यात मगधनरेश जरासंधकी पुत्री एवं माद्रीके छोटे पुत्र सहदेवकी भार्या है ॥ १३॥ इन्दीवरदयामतनुः खिता तं यैषा परासन्नमहीतले च । भाय मता माद्रवतीखुतस्य ज्येष्ठस्य सेयं कमखायताक्षी ॥ ९४॥ इसके पास जो नीलकमलके समान दयाम रंगवाली महिला है, वह कमलनयनी सुन्दरी माद्रीके ज्येष्ठ पुत्र नकुलकी पत्नी है ॥ १४ ॥ इयं तु निष्टततसुवणेगोरी राज्ञो विराटस्य खुता सपुत्रा । भायौभिमन्योनिंहतो रणे यो द्रोणादिभिस्तैर्विरः रथस्थः ॥ १५ ॥ यह जो तपाये हूए कुन्दनके सम ¡ कान्तिवारी तरुणी गोदमें बालक लिये बैठी है; यह राजा विराटकी पुत्री उत्तरा है । यह उस बीर अभिमन्युकी धर्मपत्नी है; जो महाभारत- युद्धमें रथपर बेंठे हुए. द्रोणाचाय आदि अनेक महारथियोंद्वारा रथहीन कर दिया जानेपर मारा गया था ॥ १५ ॥| पतास्तु सीमन्तरियेरुहा याः शुद्धोत्तरीया नरराजपल्यः। राशो ऽस्य वृद्धस्य पर दाताख्याः स्युषा चृवीराहतपुत्रनाथाः ॥ १६॥ श्रीमहाभारत [ आश्रमवासिकपेणि इन सवके सिवा ये जितनी लियो सफेद चादर ओद बेठी हुई दै, जिनकी मिमं सिन्दूर नहीं दैः ये सच दुर्योधन आदि सौ भाइयोंकी पत्नियाँ और इन बूढ़े महाराजकी सौ पुत्रवधुएँ हैं । इनके पति और पुत्र रणमें नरवीरोंद्वारा मारे गये हैं ॥ १६॥ पता यथामुख्यमुदाहता वो ब्राह्मण्यभावादजुवुद्धिसच्वाः । सवो भवद्भिः परिपृच्छथमाना नरेन्द्रपल्यः ुविद्ाद्धसत्वाः ॥ १७॥ ब्राह्यणत्वकरे प्रभावसे सरल बुद्धि ओर विद्युद अन्तःकरण वाले महर्षियों ! आपने सबका परिचय पूछा था) इसलिये मेंने इनमेंस मुख्य-मुख्य व्यक्तियोका परिचय दे दिया है । ये सभी राजपत्नियाँ विशुद्ध दृदयवाली हैं ॥ १७ ॥ वेश्नम्पायन उवाच पवं स राजा कुरुवृद्धचयः समागतस्तैनेरदेवपुभैः । पप्रच्छ सब कुद्दाल॑ तदानी गतघु सर्वेप्वथ तापसषु ॥ १८॥ ट्म प्रकार संजवके सुते मका परिचय पाकर जब सभी तपस्वी अपनी-अपनी कुटियामें चले गये; तब कुरुकुलके चृद्ध एवं श्रेष्ठ पुरुप राजा धृतराष् इम प्रकार उन नरदेव- कुमारोंस मिलकर उस समय सवका कुशल-मङ्गल पृचने खगे ॥ योधेषु वाप्याश्रममण्डलं तं मुक्त्या निविष्टेषु विसुच्य पत्रम्‌। स््रीवृद्धबाले च खुसंनिविष्टे यथां तस्तान्‌ कुराखान्यपृन्छत्‌ ॥ १९, ॥ पाण्डवोके सेनिकोनि आश्रममण्डल्की सीमाको छोड़कर कुछ दूरपर समस्त वाहर्नोको खोक दिया और वहीं पड़ाव डाल दिया तथा ख्री: दद्ध और बालकंका समुदाय छावनी मैं सुखपूवक विश्राम लेने ढगा । उस समय राजा धृतराष् पाण्डवेसे मिलकर उनका कुशल-समाचार पूछने लगे ॥ १९ इति श्रीमहाभारते आश्रमवासिके पवेणि जआश्रमवासपवंणि ऋषीन्‌ प्रति युचिष्टिराद्किथने पश्चलिंशो 5ध्याय: ॥ २५ ॥ इस प्रकार श्रीमङ्ामारत आश्रमदासिकपेके अन्तर्गत आश्रमबासपर्में ऋषियेकि प्रति युधिष्टि शादिका परिचयदिषयक पद्ीसरदों अध्याय पुरा हुआ ॥ २५॥ पटुर्विरोऽध्यायः धृतराट्र ओर युधिष्टिरकी बातचीत तथा विदुरजीका युधिष्टिरके शरीरमें प्रवेश धृतरा उवाच युधिष्ठिर महाबाहो कञ्चित्‌ त्वं कुशली ह्यसि । सखष्ितो श्रातभिः सर्वैः पौरजानपदेस्तथा ॥ १ ॥ ध्तराषट्ने पृठ्छा--महावाहो युधिष्ठिर ! ठम नगर तथा जनपदकी समस्त प्रजाओं और भादयोसदित कुदारसे तोद्योन१॥१॥ ये च त्वामनुजीवन्ति कश्चित्‌ तेऽपि निरामयाः। सचिवा सरत्यवगोश्च गुरवश्चैव ते चप ॥ २॥




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