कलम हुए हाथ | Qalam Hue Haath

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Qalam Hue Haath by बलराम - Balram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शवाना का कहना है कि अब मैं इस खूबसूरत जिस्म से अपनी-अपनी पत्नियों से भसंतुष्ट अफसरों तथा बड़े-बड़े व्यापारियों की रातें रंगीन करती हू और जो कुछ करती हू, महज जिंदा रहने के लिए । मुझे लगता है कि अगर मैं यह घंघा छोड भी दू तो अद मुझे अपनायिगा भी कौन ? गुमरी नंबर पांच की रहने वाली हैं अजू मिश्रा, हाईस्कूल पा्त । तीन वर्ष पूर्व उसकी शादी महाराजपुर के निवामी दुर्गाप्रसाद तिवारी से कर दी गयी थी, अठारहू वर्ष की तरुणाई में । उनका दाम्पत्य जीवन एक बर्ष तक तो ठीक-ठाक चला, पर डेढ़ वर्ष वाद भी जय वह मा न वन सकी तो वाझ कह+ कर उसकी उपेक्षा और अवमानना शुरू हो गयी सौर फिर उसकी स्थिति नौकरानी भर की रह गयी । दुखी होकर अंजू मायके चली आयी और सोचती रही कि पति उसे लेने आयेगा, पर वह वहा नहीं आया । इसी बीच रेशमा नामक औरत उसे इस वगले मे खीच तारी । यहां के जीवन से अजू खास असंतुप्ट नहीं दिखी । इमी बहाने बडे-वड़े लोगो से जान-पहचान हो गयी है। फिर भी, अजू को इस वात का दुख है कि पति की उपेक्षा मे उसके कदम इस कदर लड़खड़ा दिये कि अब चह अपने जीवन में सहज स्थिति की कत्पना भी नहीं कर पाती 1 मेरी स्टोरी का सिर्फ इतना हिस्सा ही प्रकाशित हुआ । आगे का हिस्सा रोक दिया गया, जिसके वर्गर मेरा खयाल है कि इस स्टोरी का कोई मतलब नहीं है। इस मामले में हाथ डालने के लिए एस० पी० ते थाना-इचार्जे को झिडकतें हुए मामले को जहां का तहां दवाने का आदेश दिया था, लेकिन मामला प्रेस तक पहुंच चुका था और मैं सोच रहा था कि शहर का यह रिसता हुआ नासूर--वगला नवर एक सौ पाच, अब हमेशा-हमेशा के लिए साफ कर दिया जायेगा और इससे संबद्ध सभी अपराधी जेल की रोटिया तोड़ेंगे, पर ऐसा कहा हो सका, और जो कुछ हुआ, उसने मेरी माखो में लगे प्रेस की भाजादो के जाले को फाड दिया है और मैं साफ-साफ देख पा मालिक के मित्र : 17




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