कामायनी का रचना संसार | Kamaayanii Ka Rachnaa Sansaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आज के संदर्भ में. . ११
प्रतीत होता है क्योकि इससे कथा-क्रम में कोई अन्तर नहीं आता । एकं प्रकार से
वहु कथा-विहीन सग है। पर मात्र काव्य ओर वह॒ मी 'गीतात्मकता की दृष्टि से `
यह् कामायनी का सर्वोत्करष्ट प्रसंग है । इसका.कारण यही है कि यहाँ प्रसाद को
अपनी स्वच्छन्दतावादी वृत्तियों के प्रकाशन की पूरी छूट थी और इसलिए वे
अपनी सर्वोत्कृष्ट उड़ान पर पहुँच गए। इतना ही नहीं; सगं के अन्त में
वहीं आदशंवादी समन्वयमार्गी रुख अपनाकर मनु-श्रद्धा में एकतरफा-जसा सम-
झौता करा दिया गया है। श्रद्धा हो अथवा इड़ा, प्रसाद की रूमानी मुद्राएं सक्रिय
रहती हैं पर आदशंवादिता को किसी हद तक साथ .लेकर। मनु के रूमानी, स्वच्छ-
न्दतावादी व्यक्तित्व का आध्यात्मीकरण प्रसाद को इसीलिए करना पड़ा, ताकि
वह् नायक होने लायक बन सके ओर प्रसादजी का भी आदर्शवादी रुख सुरक्षित
रह सके। यदि मनोवैज्ञानिक स्तर पर सोचा जाय तो प्रसाद काव्य-संयोजन अथवा
चरितरसुष्टि के अवसर पर भी कामायनी' में इतना तटस्थ नहीं हो पाए हैं कि
उन्हँ पूणेतया आत्ममुक्त कहा जा सके । इसी कारण कामायनी मेँ एक गीता-
त्मकता आदि से अन्त तक काव्य पर आच्छादित रहती है । एेसा ख्गता है कि कामा-
यनी में आंसू की प्रिया कवि का पीछा कर रही है, उसके अवचेतन पर उसका
प्रभाव है। गीतात्मकता के सबब से कामायनी के कृ अंश खेण्ड-लण्ड रूप मेँ बहुत
उत्कषपूणं प्रतीत होते हैं। वहाँ कवि अपनी सम्पूर्ण सज॑नात्मकता के साथ आया है,
पर जब काव्य के समन्वित प्रमाव की स्थिति {भाती है तब कामायनी के बड़े से बड़े
प्रशंसक को स्वीकारना पड़ता है कि काव्य-संघटन में शिथिलता है। इसीलिए उसे
महाकाव्य प्रमाणित करने की चेष्टा जबरन नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि आधु-
निक युग मे महाकाव्य महान काव्य का पर्याय नहीं रह गया है। कामायनी
की महत्ता की तलाश ही पर्याप्त है, और वह बड्प्पन तो उसमे है ही ।
कामायनी का रचनाकार उस वैविध्य का दावा नहीं कर सकता जो
संबोधन प्राय: निराला के लिए प्रयुक्त किया जाता है। पंत का काव्य भी
दिशाएँ बदलता रहा है। इस दृष्टि से प्रसाद और महादेवी एकरस कवि भी
कहे जा सकते हैं; जिनके अनुभूति जगत और भाषा में एक ही स्तर का
निर्वाह प्राय: हुआ है। कामायनी का वेशिष्ट्य यदि प्रसाद के सम्पूर्ण व्यक्तित्व से
सम्बद्ध करके देखा जाय तो संभव है उसके लिए एक नये समीक्षा-निकष की
आवश्यकता पड़े, पर इससे उस कृति के साथ अधिक न्याय हो सकेगा । सचाई
तो यह् है कि कामायनी एक प्रकारे से प्रसाद के सम्पूर्ण व्यवितित्व के प्रतिफल
की चेष्टा है, यह बात दूसरी है कि उनके एकीकरण में कहीं कोई कमी
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