शिखंडी | Shikhandii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शिखंडी ७
बड़ी-बड़ी पलकं पकड की धनी उयैकी तरह गुटी हरै। वे
जिस पर पड़ते, बवरीद कर दम लेते; जिम पर ठते, उसे किंसी बात का
कष्ट नहीं होते देते | जो एक बार, एक बार मी उनके अंतर का स्पर्श
कर पाया, उसके लिए कोई वस्तु झददेय नहीं थी । प्रमोद ने उन्हें दांत
मींच कर दड़े निश्चस करते देखा है, मूँछों पर ताव देकर पंजे लड़ाते
देखा है श्रौर गरीब की आँखों में एक बूँद झ्राँसू, देख कर उन्हें मोम
की तरह पसीज जाते भी देवा है | वह जब चलते, दुश्मन रास्ते से हट
जाते; गाँव के लोग मालिकः कं कर श्रद्धावनत होते, और गरीब
नवरणु-रज लेते ।
घर के श्रन्दर भी उनका रूप उतनादही रौबदार था। रश्रंगनमें
प्रवेश करते ही वह एकवार जोर से खक्रसते, समी श्रररते त्र्यो की
तरह छिप जातीं । कोई दीवारकी श्राड़्मेधू्रट कर लेती, कोई कोठी
के पीछे चज्ञी जाती श्रौर बूड़ियाँ तक, चिलम उतार, हुक्के को दीवार से
लगा चुप हो जातीं । श्राँगन में बैठे पुरुष-सदस्य श्रंखिं वचाकर् बाहर
जाने लगते; कोई इस श्रोमारे से उस सारे घूमने लगता, जैसे वह
बतज़ञा रहा हो किं वह श्रपनी नवपरिशीता की एक भाँको पा लेने को
वहाँ नहीं जमा त्रै है, बल्कि कोई काम कर रहा है । बच्चे, “चाचा
श्र “बाबा” कहते हुए दौड़ पड़ते श्रौर वे किसी को लगंक कर गोद में
ले लेते, किसी को कंधे पर बिठा अपनी एटी हुई मूँछों से खेलने देते,
किसी को उछाल-उछाल कर खूब गुदगुदा देते शौर किसी के गाल पर
बपनी कड़ी दाड़ी रगड़ सूज्ञा देते। छोटे-छोटे बच्चों के समुदाय से
निरे-घिरे वे रसोई-घर पहुँचते आर सबको साथ बिठा कर खिलाते। खाने
के समय परिहास भी करते चलते--“नुन्नी, देख तो मुन्नी की झाँखे
कैसी हैं? लिबिर-जिबिर ।” इस पर समी वच्चे षने लगते, सत्री
लजा जाती श्नौर श्रपना जु हाथ उटाकर पिताजी को सजा देने उद्यत
ही जाती | पिताजी पुचकारते--न~न, मेरी सन्नी बेदी बड़ी च्छ है |
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