अभिनेयता की दृष्टि से हिंदी नाटकों का अध्ययन | Abhineyata Ki Drishti Se Hindi Natako Ka Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
52 MB
कुल पष्ठ :
433
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अवधेश चन्द्र अवस्थी -Avdhesh Chandra Awasthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'उसकी सु्गधि है । साहित्य यदि घारा है तौ नाटक ठहर । साइइ्ित्यि की जौ
वृचा स्कान्त,सीमित बोए अविस्यात रहती हैं के नाटक कै दारा सर्वपुलूम
असीमभित और विश्व वि.यात हयै जाती हैं । शरोर और प्राण कै समान हा
साहित्य आर नाटक का सम्बन्ध है |
साहित्य का ऽप जौ उसका लच्य
पिः सः भोः भवेत कध ते के (ततः शेवो व दति किये को केन, सेवि पैः केकि कोठ पा पि आते भी, वभ कनः कने
जिस विधा का प्रारम्म ही आनन्द आर कल्याण कै भावना स
पारित हुआ हो उसे ^ सत्यं शिवं अौर् सुन्दर पि युक्त क्यौ न माना जाय ?
सत्यं शिव और सुन्दर मैं कौन-सा गुण साहित्य मैं अधिक प्रमावशाली है ,यह
बतलाना दुष्कर कार्य है, किन्तु विश्वकषि रखौन्द्रनाथ टेंगौर ` सहित शब्द सै
साहित्य की व्युत्पतचि स्वीकार करके *शिवी गुण कमै अधिक उपादैय खं
मूत्यवान घौषित करते हैं--
सहित सै साहित्य की व्युत्पाधधि हुई है । अतश धातुगत
अथ कमै पर साहित्य शब्द भै मिलन का खक माव दुष््टिगौषर् हौता है । वह
केवट पाव का मावके साधभा का साथ के साथ आर ग्रन्थक गरन्थकै
साथ भिम है । यही मही वल् वह बतलाता है कि मनुष्य का मनुष्य कै साथ
अतीत का ब्लैमाम के साथ और हुए का निकट कै साथ भी है थ कि
ख पिमाषा भै -मिलम शव्व इतमा विराट हे कि उरस
सम्पूर्ण विश्व हो विलय हो जाता है | यदि साहित्य कौ इतत विशा
पतपक्य मैं हम नम मी छै तो भी मार कला स्प.मी उसकी विश्व-कल्याण की
माविना मैं कौई गतिरौथ नहीं जाला । यह विश्व-कल्याण की भावना साहित्य
जति केः जतम के तें पमिति नः कि भके कि तेः को अनि चैकी
श्न यौभैन्दनाय श्म मुष -- हिन्दी साहित्य विवैचन,पु० १८
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