अभिनेयता की दृष्टि से हिंदी नाटकों का अध्ययन | Abhineyata Ki Drishti Se Hindi Natako Ka Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'उसकी सु्गधि है । साहित्य यदि घारा है तौ नाटक ठहर । साइइ्ित्यि की जौ वृचा स्कान्त,सीमित बोए अविस्यात रहती हैं के नाटक कै दारा सर्वपुलूम असीमभित और विश्व वि.यात हयै जाती हैं । शरोर और प्राण कै समान हा साहित्य आर नाटक का सम्बन्ध है | साहित्य का ऽप जौ उसका लच्य पिः सः भोः भवेत कध ते के (ततः शेवो व दति किये को केन, सेवि पैः केकि कोठ पा पि आते भी, वभ कनः कने जिस विधा का प्रारम्म ही आनन्द आर कल्याण कै भावना स पारित हुआ हो उसे ^ सत्यं शिवं अौर्‌ सुन्दर पि युक्त क्यौ न माना जाय ? सत्यं शिव और सुन्दर मैं कौन-सा गुण साहित्य मैं अधिक प्रमावशाली है ,यह बतलाना दुष्कर कार्य है, किन्तु विश्वकषि रखौन्द्रनाथ टेंगौर ` सहित शब्द सै साहित्य की व्युत्पतचि स्वीकार करके *शिवी गुण कमै अधिक उपादैय खं मूत्यवान घौषित करते हैं-- सहित सै साहित्य की व्युत्पाधधि हुई है । अतश धातुगत अथ कमै पर साहित्य शब्द भै मिलन का खक माव दुष््टिगौषर्‌ हौता है । वह केवट पाव का मावके साधभा का साथ के साथ आर ग्रन्थक गरन्थकै साथ भिम है । यही मही वल्‌ वह बतलाता है कि मनुष्य का मनुष्य कै साथ अतीत का ब्लैमाम के साथ और हुए का निकट कै साथ भी है थ कि ख पिमाषा भै -मिलम शव्व इतमा विराट हे कि उरस सम्पूर्ण विश्व हो विलय हो जाता है | यदि साहित्य कौ इतत विशा पतपक्य मैं हम नम मी छै तो भी मार कला स्प.मी उसकी विश्व-कल्याण की माविना मैं कौई गतिरौथ नहीं जाला । यह विश्व-कल्याण की भावना साहित्य जति केः जतम के तें पमिति नः कि भके कि तेः को अनि चैकी श्न यौभैन्दनाय श्म मुष -- हिन्दी साहित्य विवैचन,पु० १८




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