दस्सापुजाधिकार विचार | Dasshapoojadhikar Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
51
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४ )
किसी ने कोई विजातीय विवाह अथवा धरेजा करावा करलिया
हो तब उसकी संतान दस्सा कटी जाती है। शाखो में दस्से का
वाचक ““जातिसंकरः शब्द अनेक स्थलों परर पाया जाता है
और इस प्रकार के जातिसंकर, जातिपतित अकुलीन अथौत्
द्स्सों के पूजन का निषेध अनेक जैन ग्रन्थों में हे जिन में से
कुछ यहां भी उधृत किये जात हैं ।
पहला प्रमाण एजासार अन्थ
कलन जात्या संशुद्धो मित्र बन्ध्वा दिभिशुचिः।
गुरूपदिष्ट मंत्राल्यः प्रणि बाधादि दुरगः ॥१८॥
श्रथोत्--जिसका जातिकुल शुद्ध हो. (दस्सा या जातिसंकर
न हो ) मित्र बन्धु वान्धव श्रादिसे मी शुचि अथोत् शुद्ध हो
जाति बहिष्कृत पद्चायत से दण्डित न हा. तथा गुरू के द्वारा
पूजा विधि का सीखा हुआ हा ओर प्राणियों का बाधां पहुंचाने
वाला हिन्सक न हा, वय पूजक दा सक्ता ह। इस प्रकार
उपरान्त प्रमाण से दस्सां अर्थात् जाति संकरं के पूजा का निपेष
स्पष्ट सिद्ध हाता दै । शक्र मं झाये हुए “कुलेन जात्यादि संशुद्धा
शु चबन्धु सुद्टजनैः” पद् पर निष्पक्तता से विचार कीजिये ।
दूसरा प्रमाण धमं संग्रह श्रावकाचार
जात्याकटेन पूतात्मा शुचिवन्धु सुदञ्ननेः ।
गुरूपदिष्ट मंत्रेण युक्तः स्यादेष पूजकः ॥१४३॥
इसका भी अथ बिलकुल पू्ंत् ही है शलोक मे श्राये हू
“'जात्याकुलेन पूतात्मा शुचिबन्घु सुहलनेः” पद से जाति पतित
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