जैनमत समीक्षा | Jainamat Samiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
शक्ति बढाओ, अठ घम से हटा, साचा, समझे, यदि
आप कौ समभ में न आवे, ता किसी विद्दान् से ज्ञात
करा, यदि हटवशात् भ्राप कुह भो नहीं कर सक्ते ह,
श्र तुम्हें यही आग्रह है, कि जेनमतरौसत्यडे, ता
आप सम्पूण जैनियों को ओर से एक सभा (कमटो) नियत
करा, भौर उन सब में से प्रतिनिधि वनाओ, उसके सड्
प्रेम पूर्वक परस्यर बैठकर शास्त्राध करा, अरन्य मतावल-
स्वियों केविदहानों का न्यायाधोश करा, न्याय युक्ति
प्रमाण श्रौर बुक लेकर निर्णय करने कं पात् पुनः
जिसका पक्त गिर जावे, वह दूसरे पक्त को प्रेम पूर्वकं
सौकार करे, वथा विललाप करने ओर भांडों को नकलों
कं सदश पुस्तकों के छपान आदि से काई भी अच्छा. न
मानेगा, भ्रीर न काई यह कहेगा, कि झ्रा्यसमाज कौ
ओर से किये इरण प्रश्नों का उत्तर यथावत् दे दिया मया
ड, या वाममा्गं तथा चार्वाक् श्रौर बौहसे अलग करक
जैनमत को एथक् ठहराया हा, खामो दयानन्द जो कौ
कुक जेनियों से शत्रुता नदीं थो, कंवल परापकारा्थं तुम
के इस भयानक वाममा्मं नास्तिक जैन मत से उन्होंने
ता निकालना चाहा था, परन्तु जिसके शिर पर भावौ
रूप कष्ट आन उपस्थित हाता हे, उसे दूसरे का उपदेश
श्रेष्ट नीं लगता, तुम भारतसन्तान डाकर भी ऐसी
धार निद्रा में शयन कर रहे हो, कि निरपन्न डाकर
सत्णसत्य के निणय करने में सर्वधा असमर्थं हा यये हो,
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