मोक्षशास्त्र | Mokshashastra
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९५)
अथे--( नैगमसंग्रहन्यवहारजुसूत्रशव्दसमभिरूदेव॑ंभूताः )
नेगम, संहः व्यवहार, ऋलुसूतर, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ये
सात ( नया; ) नय हं । वस्तुमे अनेकं धम अथौत् स्वभाव होते
ह, उनसे किसी एक धमकी मुख्यता छेकर अविरोधरूप साध्य
पदार्थको जाने या कहे सो नय है । नयके ऊपर छिखे इए सात भेद
हैं॥३३॥
१ जितने द्रव्य हैं, वे अपनी भूत, भविप्यत् और वर्मान-
कालकी समम्त पीयते अन्वयरूम अर्थात् जोड़रूप हैं-अपनी
किसी भी पयीयते कोई रव्य भिन्न नहीं है । सो अतीत पर्यीयांका
तथा भविष्यत् पयोयोंका वत्तेमानकाठमं संकल्प करे, ऐसे ज्ञानकों
तथा वचनको नैगमनय कहते हैं. । जेसे--कोई पुरुष रोध बनानेवी
सामग्री इकट्दी करता है और उससे किसीने पूछा कि ' क्या करते
हो १ * इसके उत्तर उसने कहा कि, (रेधि बनाता: किंतु
यहां अभीतक रोटी वननेख्म पयौय प्रगट नौ हई, चह केवल
मात्र ख्कदिरयौ जल वगैरह रख हा है तथापि नैगमनयसे रेता वचन
कह सकता है कि ' मैं रोटी वना रहा द ' ।
२ जो एक वस्तुकी समस्त जातिको व उसकी समस्त पयोयोंको
सुंप्रदरूप करके एकस्वरूप कहे, उसको संग्रहनय कहते हैं 1
जेसे * घट * कहनेसे सब घटोंको समझना अथवा ४ द्रव्य * कहनेसे
जीव अजीवादि तथा उनके भेद प्रभेदादि सबको समझना यह
संग्रहनय हे ।
जो संग्रहनयसे ग्रहण कयि इए पदार्थोका व्रिधिपूवैक ( व्यव
हारके अलुकूढ ) व्यवहरण अथात् भेद प्रभेद करे सो व्यवहारनय,
है । जेसे-संप्रदनयसे ४ द्रव्य : कनेसे समस्त भेद प्रभेदरूप दर्यौका
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