मोक्षशास्त्र | Mokshashastra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९५) अथे--( नैगमसंग्रहन्यवहारजुसूत्रशव्दसमभिरूदेव॑ंभूताः ) नेगम, संहः व्यवहार, ऋलुसूतर, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ये सात ( नया; ) नय हं । वस्तुमे अनेकं धम अथौत्‌ स्वभाव होते ह, उनसे किसी एक धमकी मुख्यता छेकर अविरोधरूप साध्य पदार्थको जाने या कहे सो नय है । नयके ऊपर छिखे इए सात भेद हैं॥३३॥ १ जितने द्रव्य हैं, वे अपनी भूत, भविप्यत्‌ और वर्मान- कालकी समम्त पीयते अन्वयरूम अर्थात्‌ जोड़रूप हैं-अपनी किसी भी पयीयते कोई रव्य भिन्न नहीं है । सो अतीत पर्यीयांका तथा भविष्यत्‌ पयोयोंका वत्तेमानकाठमं संकल्प करे, ऐसे ज्ञानकों तथा वचनको नैगमनय कहते हैं. । जेसे--कोई पुरुष रोध बनानेवी सामग्री इकट्दी करता है और उससे किसीने पूछा कि ' क्‍या करते हो १ * इसके उत्तर उसने कहा कि, (रेधि बनाता: किंतु यहां अभीतक रोटी वननेख्म पयौय प्रगट नौ हई, चह केवल मात्र ख्कदिरयौ जल वगैरह रख हा है तथापि नैगमनयसे रेता वचन कह सकता है कि ' मैं रोटी वना रहा द ' । २ जो एक वस्तुकी समस्त जातिको व उसकी समस्त पयोयोंको सुंप्रदरूप करके एकस्वरूप कहे, उसको संग्रहनय कहते हैं 1 जेसे * घट * कहनेसे सब घटोंको समझना अथवा ४ द्रव्य * कहनेसे जीव अजीवादि तथा उनके भेद प्रभेदादि सबको समझना यह संग्रहनय हे । जो संग्रहनयसे ग्रहण कयि इए पदार्थोका व्रिधिपूवैक ( व्यव हारके अलुकूढ ) व्यवहरण अथात्‌ भेद प्रभेद करे सो व्यवहारनय, है । जेसे-संप्रदनयसे ४ द्रव्य : कनेसे समस्त भेद प्रभेदरूप दर्यौका




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