काव्य के रूप | 1371 Kavya Ke Roop (1950)

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1371 Kavya Ke Roop (1950) by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य का स्वरूप ४ साहित्य हमारे अव्यक्त भावों को व्यक्त कर हमको प्रभावित करता है । हमारे ही विचार साहित्य के रूप में मूर्तिमान हो हमारा नेतन्व करते है। साहित्य ही विचारों की शुप्त शक्ति को केन्द्रस्थ कर उसे कार्यकारिणी वना देता है । साहित्य हमारे देश के भावों को जीवित रखकर हमारे व्यक्तित्व को स्थिर रखता है । च्तेंमान भारत- वषमे जो परिवर्तेन ह्र है न्नौर जो धमे मे अश्रद्धा उत्पन्न हुई दे वह्‌ अधिकांश मेँ विदेशी साहित्य का दी फल है । सादित्य द्वारा जो समाज में परिवर्तन होता दै बह वलवार द्वारा क्यि हए परिवर्तन से कहीं स्थायी होता है । श्राज हमारे सौन्दर्य-सस्बन्धी विचार, हमारी कला का आदर्श, हारा शिड्राचार सच विदेशी साहित्य से प्रभावित हो रहे हैं । रोम ने यूनान पर राजनीतिक विजय प्रप्त की थी किन्तु यूनान ने अपने सादित्य द्वारा रोम पर मानसिक विजय प्राप्त कर सारे योग्रोप पर अपने विचारों और संस्कृति की छाप डाल दी। प्राचीन यूनान का सामाजिक संस्थान वरहो के तत्कालीन साहित्य के प्रभाव को उवलन्त रूप से प्रमाणित करता है । योरोप की जितनी कला है वह्‌ भराय. गूनानो आदर्शो पर ही चल रही है । इन सव वातो के अतिरिक्त हमारा साहित्य हमारे सामने हमारे जीवन को उपस्थित कर हमारे जीवन को सुधारता है । हम एक आदश पर चलना सीखते हैं । साहित्य हमारा मनोविनोद कर हमारे जीवन का भार भी हइलका करता है। जहाँ साहित्य का अभाव है वरो जीवन इतना रम्य नहीं रहता । साहित्य एक गुप्त रूप से सामाजिक संगठन और जातीय जीवन का भी बद्धक होना है। इम अपने विचारों को अपनी अमूल्य सम्पत्ति सममे है, उन पर हम गवे कसते है । किसी अपनी सम्मि- लित वस्तु पर गवे करना जातीय जीवन और सामाजिक संगठन का प्राण है। अप्रजो को ेक्धपियर पर बड़ भारी गव है। एक अंग्रेज साहित्यक का कथन है कि वे लोग शेक्सपियर पर अपना सारा साम्राज्य न्यौछाचर कर सकते हैं । हमारा साहित्य हमको एक संस्कृति और एकजातीयता के सूत्र में बॉघता है। जैसा साहित्य दोता है बैसी ही हमारी मनोवृत्तियोँ हो जाती हैं और हमारी मनोदत्तियों के अनुकूल हमारा कार्य होने लगता है; इसलिए हमारा साहित्य हमारे समाज का प्रतिबिम्ब दी नहीं बह उसका नियामक और उन्नायक भी है ।




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