स्टालिन | Stalin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घटना याद आगई। उ प्र समय उसने अपने साथ बाल्यकाल के कुद्ध व्ाबारागद मित्रों की एक मण्डली ले रक्‍्खी थी और उनकी सद्दायता से घद्द नदी-तटवर्तों फल-विक्रताओं की दुकानों पर आक्रमण किया करता था । यदि किसी अवसर पर कोई व्यक्ति इन अल्प-बयस्क चोरों को देख लेता 'और इनका पीछा करता, तो यद्द रक्षा के लिये नदी के वेगपूण पानी में कूद कर किसी ओर निकल जाते थे । उस समय उस नवयुवक विद्यार्थो के सामने एक 'झल्पवयस्क 'आवारागद लड़के का चित्र उपस्थित हुआ, जिसके मुख मण्डल पर मय के चिन्दद थे श्और जो एक द्वाथ में चोरी कः खबू जा लिये पानी को लहरों को चीरता हुआ सामने के तट की शोर तीव्र गति से चला जा रददा था, जहां उसके साथी उत्सुक नेत्रों से उसके आगमन की बाट जोह रहे थे । पाठक समक गये होंगे कि यद्द विद्यार्थी हमारा चरित नायक जोज़फ स्टालिन था, जिसका बाल्यकाल गोरी नामक छोटे से ग्राम में ( तफ़लस के निकट ) एक द्रिद्र परिवार में व्यतीत हुआ था । उसका पिता रूस के दक्षिणी प्रदेश गजस्तान का एक द्रिद्र छर दुःखी कि सान था, जो जन्म भर कठोर परिश्रम करने पर भी इस योग्य न दो सका कि अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूति कर सकता । उस गरीब की सारी ायु दल जोतते दी बीत गई । चसको भूमि अपनी उपज से उसकी आवश्यकताओं की पूतठि न कर सकती थी। अतएव साथ दी साथ उसे मोची का काय भी करना पढ़ता था । इस छोटे से निजन प्राम में भविष्य के स्टालिन का बाल्यकाल सोसो के नाम से व्यतीत हुआ । बाल्यकाल में दी वद्द इतना चब्चल, उद्धत और आवारागदं लड़का था कि आम के बहुत से व्यक्ति उस से ढरते थे ओर उसके समवयस्क




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