दिनकर | Dinkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवेश ४ परल्यां वैनां च डाकिन्यां भीमशङ्करम्‌ । सेवुषन्धे तुः रमेशः नागेशः दादकावने ॥२॥ चराणस्यां तु विश्वेशः चयम्यकं गौतमीतटे हिमालये त केदारं घुश्मेश च शिवालये ॥३॥ पतामि ज्योतिलिज्ञानि सायं प्रातः पठेन्नरः । सक्तजन्मरुततः पाप स्मर्शेन चिनश्यति ।भ* इन्‌ ज्योतिलिद्धो के सायंप्रात्तः पाठ करने से सात जन्मों के पाप नष्ट दो जाते हैं । पाप नष्ट होने में किसी को शंका हो सकती हैं लेकिन इन श्लोकों द्वारा राष्ट्र के ऐक्य का प्रतिपादन होने में कोई «देश नहीं कर सकता | झाज भी प्रत्येक आर्य संकल्प करते समय “जम्बूद्ीपें भरत - खण्डे,.. ...” का स्मरण करता है। स्नान करते समय गया, यमुना, सरस्वती, सिन्घु, कावेरी, गोदावरी श्रादि भारतीय नदियों के नासों का सामूहिक रूप से स्मरण करता है । राष्ट्र-प्रेम का झर्थ है , उसकी नदियों; प्वत्तों, तीयों. झ्रादि से प्रेम । आधुमिक काल में छिछली राजनीति को प्राघास्य मिलने के कारण बंगाल-विहार की समस्या उठ खड़ी होती है ! 4, यों की इस पवित्र भरूमि का श्रत्यधिक प्रचलित नाम मारतवर्ष है । पुराणों की प्राचीन बंशावलियों में ऋषभ श्रौीर उनकी पत्नी जयन्ती के नाम श्राते हैं। इनके एक सी पुत्र थे । सबसे बड़े पुत्र का मास भरत था | व्वष्य के युत्र विश्वरूप की कन्या से भरत का रवाह हृश्रा । इन्द पाच पुत्र हुए-- सुमति, राट्-भूल, सदशन, यावस्ण श्रौर घूमकेतु । राजा भरत के नाम पर ही इनके राज्य का नाम भारतवर्ष पढ़ा | भरत की मृत्यु के उपरान्त उनके पांचों पु्रों ने भारववष को पाँच भागों में बाँट लिया । उक्त कथच्‌ की सत्यता के लिये निम्नलिखित पुराण द्रष्टव्य ई : - भागवत पु० { ५४ 1, वायु पु° [ २।३३ 3, लिड चुन [ ४७२४ 3 और विष्णु पुराण [ २१।६३२ } | इख सिलसिले में यह भी जान लेना श्रावश्यक है कि मारतवष का नाम इसके पहले श्रजनाभवष था ! वैदिक साहिस्य में राजा प्रथु के नाम का कई वार उल्लेख डुश्रा है। यह श्रादि राजा कहलाते हैं । इन्दं के माम पर इस घरती का नाम प्रथ्वी पड़ा । राजा प्रथु झपने को भरत भी कहा करते थे। संभवत्तः इनके साम से भी इस देश का नामकरण मारतवष' हुश्रा हो । दुष्यंत-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम से इस देश का नाम भारतवष' हुश्रा--इस वात से सर्व- ५ साधारण में परिचित है । ऋग्वेद के कई स्थलों पर मस्त नाम के कुल या बंशों का उल्लेख भिक्लता है छेद के तीसरे श्रौर सातवें मश्ठर्लो मे व शरीर सुदास के साथ तथा छे मर्ल म दिवोदास के साथ भारतो का वणन श्राया दईैः-




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