समय सार | Samaya Sara

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Samaya Sara by भागचंद सोनी -Bhagchand Soni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा संर १३९१ १३२ १३३ ९३ १३५ १३९६-१३६ १४०-१४४ १४८५-१४६ १४७१८ 99 2 १० ० कक विषय यदि कहाजाय जीव परिणामी होने से द्रव्य क्रोध के सिमित्त के बिना भाव क्रोध रूप परिणम जाता है, क्योंकि वस्तु शक्ति दूसरे की श्रपेक्षा नहीं रखती तो मुक्तात्मा भी क्रोघ रूप परिणम जायेगी पुण्य पाप आ्रादि सात पदार्थे जीव श्रौर पृद्गलके संयोग परिणाम से उत्पन्न होते हैं गाथा ७४ से १३० तक की समुदाय पातनिका वाह्याभ्यंतर परिग्रह से रहित श्रात्मा को दर्शन ज्ञानोपयोग स्वरूप श्रनुभव करने वाला निर््रयसाधु होता है जित्तमोह का लक्षण जो साघु शुभोपयोगरूप धमे को छोड़कर शुद्ध उपयोग श्रात्मा को जानता है वह धर्मं परिग्रहसे रहित हं! जिन भावों को आ्रात्मा करता है उन का वह कर्ता होता है ज्ञानी ज्ञानमय भावों का श्रौर श्रज्ञानी श्रज्ञानमय भावों का कर्ता है निविकल्प समाधि मे परिणत वाला भेद ज्ञान प्रज्ञानी कर्मों को करता है ज्ञानी कर्मों को नहीं करेंता हैं तीनगुप्ति रूप भेदज्ञानवाले ज्ञानी के सब भाव ज्ञानमय होते हैं भ्रज्ञानी के संव भाव श्रज्ञानमय होते उपादान कारण सहश कार्य होता है देवों में उत्पन्न होने वाले सम्यग्दष्टि के विचार तथा ्रागति शअनुवादक द्वारा शुद्धोपयोग का लक्षण मिथ्यात्व, श्रसंयम, श्रज्ञान, कषाय व योग के उदय से जो परिणाम होते हैं उनसे वंध होता है कर्मोदय होने पर यदि जीवरागादि रूप परिणमता है तो बंध होता है। उदय मात्र से वंध नहीं होता । यदि उदय मात्र से बंध होने लगे तो संसार का भ्रभाव ही न हो, क्योंकि संसारी के सदा कर्मोदय रहता है जीव के श्रौर कर्मों के दोनों के यदि रागादि भाव होते हैं तो दोनों को रागी होना चाहिये यदि श्रकेले जीव के रागादि परिणाम मान लिये जावे तो कर्मोदय के बिना भी होने चाहिये कव के विना भी रागादि भावहो जावे तो शुद्धजीवों के भी होने चाहि द्रव्य कमं श्रनुपचरित श्रसद्ध.त व्यवहारनय से श्रौर जीव श्रशुद्ध निश्चयनय से रागादिका कर्ता हं ग्रनृपचरितस्ध. त व्यवहारनय को श्रपेक्षाश्रशुद्ध निश्चयनय को निष्वय- संज्ञा है किन्तु शुदनिश्चय नय को श्रपेक्षा अ्रशुद्धनिश्चयनय व्यवहारदही है जीव श्रौर पुद्गल दोनों कमं रूप परिणमन करे तो दोनों एकपने को प्राप्त पृष्ठ सं © १०६ ११० ११३ ११५ ११६ ११६-११७ ११७ १९१८ ११६ १९० १२१ ९१२२ १२३ १२३ १२९२




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