गांधीजी की देन | Ghandhi Ji Ki Deyn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ गांधीजी को महानता चलते हैं ? दारोगा साहव ने गांधीजी से इसकी शिकायत की ! गांधीजी ने घरणीवावू से पूछा कि वहां आपके साथ दारोगाजी ही जा बैठते थे कि और भी कोई ? वकील साहव ने कहा कि क्यों, किसान भी वैठते थे । तव गांधीजी ने कहा--“जव उतने किसानों के बैठने से आपको कोई हजं नहीं होता ह तो सिफं एक ओर आदमी के भिल जाने पर आप क्यों घवराते हैं? आप दोनों में भेद ही वयों करते हैं ? ओह, जान पड़ता है, आप दारोगाजी से डरते हैं।” उस विचारे को भी किसानों के साय क्यों नहीं बैठने देते ?” यह विनोद सुनकर किसान तो निर्भकिहो ही गये, दारोगाजी को काटो तो खून नहीं । लाज से गड़ गये । गांधीजी ने उन्हें मामूली किसानों के वीच गिन दिया । उस दिन से वकील साहव तो निर्भय हो गये, किसान भी विलकुल निडर होकर निलहों के सामने उनके अत्या- चारों का बयान करने कगे । गांधीजी के मत में भय के लिए जगह ही कंसे हो सकती है? वहां तो कुछ छिपाकर कहने या करने का विल्कुल काम ही नहीं । वहां तो मन, वचन और कमं की एकता है । वेचारे खुफिया पुलिसवाले वहां से किस भेद का पता लगायंगे ? गांधीजी के विचारों के अनुसार जो भी कुछ करते या करना चाहते उनमें किसी तरह के छिपाव की प्रवृत्ति न होनी चाहिए । इसलिए हम लोगों के सामने खुफिया पुलिस का भय खत्म हौ गया किन्तु महात्माजी कहांतक सब वातों को प्रकारित करते रहना चाहिए, इसकी भी सीसा रखते हैं, क्योंकि वह तो समन्वय करके चलते हूँ। एक उदाहरण से हम लोग समझ जायंगे कि वह खोलकर कहने या न कहने मे कंसा सुन्दर समन्वय रखते हँ । जिन दिनों हम लोग चम्पारन में व्यस्त थे और एक धर्मशाला में डेरा डाले हुए थे, उन्हीं दिनों एक रात हम लोग खुली छत पर अगले दिन की दिनचर्या पर वैठकर विचार कर रहे थे । एक साथ बैठकर ऐसा रोज ही कर लिया करते थे । एक सज्जन, जिनके नाम ओर कृतिथों से सव लोग परिचित थे और जिन्होंने हिन्दुस्तान और इस प्रान्त मे जागृति छाने में काफी हाय बटाया था, एक रात वहां दन्ना जा




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