कांकरोली-दिग्दर्शन | Kankroli Digdarshan

Book Image : कांकरोली-दिग्दर्शन  - Kankroli Digdarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[६] उन्हें भी इससें उतना दी अधिकार दिया णया जो प्क उ त्ण के जन को प्राप्त हो सकता था भगवान की भक्तिमें खी. श्रुद्र, चाण्डाल, पतित, म्लेच्छ-यवन आदि सभी अधिकारी माने गये, जिसके कारण आचार्य का मार्ग अत्यधिक लोकप्रिय हो गया] आचार्य कै त्यागमय सादा जीवन अर उश्व-चिचार के आदर्श ने साधारण जनस्माज के साय राजा-मदहाराजा, विद्धत्‌- समाज; यहाँतक कि, विधमियों को भी प्रभावित किया था । महाप्रभु ने लोकव्यवद्दार को आदश बनाने के लिये गीता का आदर्श सामसे रक्‍्खा। भागवत केद्वारा स्वकीय सिद्धान्त की विद्राद्‌ व्याख्या की ओर वेद-त्रह्यखघ्र को प्रमाण मानकर अपने मन्तघ्य को छोकश्चाख दोनों से समन्वित किया परिणामतः यद मागै समी को भिय हुमा । आपके वैदुष्य से प्रभावित दोकर विजयनगर के सभ्राद्‌ राजा छष्णदेव जौर भोडछा के महाराजा रामभद्रने आपका कनकाभिषेक कियाजो उस समय सवसे वडा स वैभौम विद्धत्सन्मान माना जाता था] इन्दी की विशाल सभा में आचार्य पद समर्पित किया गया जिसे श्रीवल्लभ विष्णुस्वामि-सम्पदाय के संरक्षक स्वीकार किये गये । विष्णुस्वाभि-सम्पदाय के साथ पुष्टिमारैकी सरसताने भारतीय जीवन की प्रणाली में ज्ञो-कर्म, क्ञान; भक्ति के रूप में शरीर, मस्तिष्क ओर हदयभावना को अपनाया बहु धिश्वधसे का प्रोज्वल प्रतीक ई । सादिव्य-संगीत कटा यदह तीनो अपनी उच्चता के साथ मानव-जीवनके पारमार्थिक उपयोग में जितने इस मागे र घुरुमिक गये र षद इसका पक्त चमत्कार है दिन्दी के खयै मदात्मा खरद्यास, परमानन्ददास आदि अनेक कवियों, संगीत्तज्ञों, कला-कोषिदों को इस मार्स ने चमका दिया है ।




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