अक्षरों का आरम्भ और भाषा विज्ञान | Aksaro Ka Armbha Aur Bhasha Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९$
पीने के लिए मार भी डालता है। यदद बात मान ली गई हे
कि रँचे दरजे के बस्दर और बनमाजुस मनुष्य से शरीर की
बनावट में बहुत मिलते-जुलते हैं । मगर मनुष्य ऊंची बुद्धि
रखने के कारण दूसरे जानवर से ऊँचा है । प्राणि-शास्त्र का
ज्ञान रखने वाले सभी विद्वाच मजुष्य और जानवर को अपने
भावों और चेतनाश्रों को आवाज द्वारा जाहिर करने के नाते
एक-जेसा समसते हैं; जैसे तोता-मेना के बोलने की शक्ति
कझरीव-करीब मचुष्य के बोलने की शक्ति से मिसती-जुलती
है ¦ अक्सर, जानवर भी मनुष्य की बातें समकते हैं ।
पृथ्वी के घरातल पर प्राचीन युग से प्राणियों के जन्म
की एक कड़ी बरावर चली आ रही है । यह जाति मनुष्य से
बहुत अधिक मिलती-जुलती है । पर इस समानता का अथं
वंश की समानता नहीं समझना चाहिए । विधाता का मतलव
तो एथ्वी को और एक के बाद दूसरी परिस्थितियों से युजरते
हुए विभिन्न जानवरों को बनाकर अन्तमं इस पृथ्वी प्र
मनुष्य को बनाना था |
वेसान का लड़का मरकियून, ज्ञोरास्ट्रियन जुरदिस्त की
तरह अपने को धर्म बनाने वाला कहता था । उसका धरम
यह था कि प्रकाश और अन्धकार अत्यन्त पुराने रै और
ये अपने-झाप पैदा हो गए हैं। इन्हीं दो चीजों से सारा
संसार पैदा इरा है । उसका विचार था कि इश्वर ने संसार
को पैदा नहीं किया हे, क्योंकि संसार में बुराइयाँ अधिक हैं;
और बुराइयों का पैदा करने वाला इश्वर नहीं हो सकता,
क्योंकि वह वुराइयों से परे है |
मनुष्य के प्राचीन होने की बहस चहुत लम्बी हे । विद्वानों
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