अक्षरों का आरम्भ और भाषा विज्ञान | Aksaro Ka Armbha Aur Bhasha Vigyan

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Aksaro Ka Armbha Aur Bhasha Vigyan by आगा हैदर हुसैन - Aaga Haidar Husain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९$ पीने के लिए मार भी डालता है। यदद बात मान ली गई हे कि रँचे दरजे के बस्दर और बनमाजुस मनुष्य से शरीर की बनावट में बहुत मिलते-जुलते हैं । मगर मनुष्य ऊंची बुद्धि रखने के कारण दूसरे जानवर से ऊँचा है । प्राणि-शास्त्र का ज्ञान रखने वाले सभी विद्वाच मजुष्य और जानवर को अपने भावों और चेतनाश्रों को आवाज द्वारा जाहिर करने के नाते एक-जेसा समसते हैं; जैसे तोता-मेना के बोलने की शक्ति कझरीव-करीब मचुष्य के बोलने की शक्ति से मिसती-जुलती है ¦ अक्सर, जानवर भी मनुष्य की बातें समकते हैं । पृथ्वी के घरातल पर प्राचीन युग से प्राणियों के जन्म की एक कड़ी बरावर चली आ रही है । यह जाति मनुष्य से बहुत अधिक मिलती-जुलती है । पर इस समानता का अथं वंश की समानता नहीं समझना चाहिए । विधाता का मतलव तो एथ्वी को और एक के बाद दूसरी परिस्थितियों से युजरते हुए विभिन्‍न जानवरों को बनाकर अन्तमं इस पृथ्वी प्र मनुष्य को बनाना था | वेसान का लड़का मरकियून, ज्ञोरास्ट्रियन जुरदिस्त की तरह अपने को धर्म बनाने वाला कहता था । उसका धरम यह था कि प्रकाश और अन्धकार अत्यन्त पुराने रै और ये अपने-झाप पैदा हो गए हैं। इन्हीं दो चीजों से सारा संसार पैदा इरा है । उसका विचार था कि इश्वर ने संसार को पैदा नहीं किया हे, क्योंकि संसार में बुराइयाँ अधिक हैं; और बुराइयों का पैदा करने वाला इश्वर नहीं हो सकता, क्योंकि वह वुराइयों से परे है | मनुष्य के प्राचीन होने की बहस चहुत लम्बी हे । विद्वानों




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