ढूंढनीजी के कितनेक [अपूर्वाक्य] | Dhundhni Ji ke Kitnek [Apoorvakya]
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
449
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूढनाजीके-कितनेक, अपूर्ववाक्य. ... ( १७ )
- ?
हे दूंडनीजी ? इसमें भी ख्याल करना कि-जब दूंने जेनघ-
मंके तत्वोंसे-विपरीत लेखकों लिखा; तब ही जेनधर्मसे विरोध
रखनेवाछे-ते पेडितोंने, तेरी म्रसंसा कीई ? इस बातसें दूने क्या
जंडा छगाया ? | पाठकगण ! इस जाहीरातमें-दूंढनीजी ने-प्रथम
ये छिखा है कि-सूत्रपमाण, कथा, उदाहरण, युक्ति आदिनं)
हस्तामरुक करानेमें-कुछ भी बाकी नहीं छोडी ।
इसमें इतनाददी विचार आता दे कि-आजतक जो जो जेन
धर्मके-घुरंधर महापुरुषों हो गये सो तो-सुन्नादिक प्रमाणोंसें हस्ता-
मलक करानेमें सब कुछ बाकी दी छोड गये है। केवल--साझ्ातुपणे
पवेत तनयाका स्वरूपकों घारण करके-इस दूंदर्नानीने दी-कुठ भी
बाकी नहीं छोड़ा हे? । हमको तो यहीं आश्रय होता हे कि, इस
दढनीनीको-जूढा ग्ने, कितनी वे भान वनादी है १।
क्यौंकि दूंढनीजीने-जेन मेके तखकी व्यवस्थाका नियमानु
सार एक भी बात, नददीं लिखी हे । तो भी गव कितना किया है?
सो हमारा लेखकी साथ विचार करनेसे-पाठक वगकों भी-माछूम
हो जायगा ।
और हमे भी उस विषयक तरफ चखतो वखत पाठक वर्गका
किंचित् मात्र ध्यान खेचेंगे। और उंदर्नाजीकी कुयुक्तियांको, तोड़
_ नेंके सिवाय, नतो अशुद्धियांकी तरफ रक्ष दिया है । ओर नतो
पाठाडंबर करके-वांचनेवालेकों कंटाला उत्पन्न करनेका विचार
किया द । केवल श्री अनुयोग दरार सू्रके वचनातुार-चार नि-
्ेपका, यत् विचित् स्वरूपको दी-समनाने्ा विचार किया है ।
सो 1षेचार करनेवारे-मव्य पुरषोको, हमारा यरी कहना है कि-
आनकार्के नवीन पंथी्योके विपरीत चचनपर आग्रह नहीं करके,
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