रामचंद्रिका भाग 2 | Ram Chandrika Part -ii

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Ram Chandrika Part -ii by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ग्रथमप्रकासः १ ( ११९) पी मं है और देव नहीं देसकत कहूँ न रामढीक पाइ हैं पाठ है तो रामलोक चेकुंठ ॥ १६ ॥ प्रथम ईर वणन करयो अव याम रामचंद्रकों स्वभाव गण वरण्यी है रामचन्द्र जो बोले सी फेरि नहीं बोले अथ जी एक वात कट्यो सौई करयो ई फेरि वदछि के जर वातनहीं कल्यो षन गमनादि वचन ते जानो यौ जाको दान दियो ताको फेरि वही दीन्हा अथं एकी बार रसो दियो जाम वाके फेरि मोगिवेकी इच्छा नदीं रदी विभीषणादे को ठंका- || दाना ते जानो जोर राकी एकटी वार एेसा सारकं नार कियो जामे फेरि नही मासि पस्यो खरदूपणादि वधते जानौ ओं संप्राममं ज्रि नदीं सरे खरदूषण रणाद कै युद्धते जानां जं ठोक की लीक मयांदा को लोप नहीं कियो रावण के वधसों त्रह्मदोष मानि अश्वमेध _करणादि सां जानो ओं दान ओं सत्य ओं सन्मान के सुय करक दिशा ओ विदिशा ओपी है अथं जिनको सुयश दिशि विदिशन में छाइ रहा है ओ जिनको मन रोम ओ || मोह ओं भद्‌ जौ काम के वर्‌ नीं भयो राज्य त्यागादि सों छाम विवराजानी || माता पिताको दुःखितहुए देखि वन गमन करनादि सो मोह विवर जानो जो || अगस्त्यादिं ऋषिनके यथोचित सत्कार सों मदं षिवद्च जानी एक पत्नी त्रतसो | काम विव जानी जाके ऐसे स्वभाव र्णे सोर श्रीराम वाराहादि अवतारन म || मुनिश्रेष्ठ अवतारी कहे अवतारकों धरे साक्षात्परबह्म है अथवा श्रीराम अवतारी | कहे अनेक अवतारन को 'धरत हैं औ परत्रह्म हैं ॥ १७॥ अहष्ट अंतद्वीन इषट- || पूज्य देवता ॥ १८ ॥ मू°-गाहाछद्‌॥ रामचन्द्र पदप वृन्दारक वदाभिवरंदनीरयं॥ केशवमतिभूतनया टोचनचचरीकायते ॥ १९ ॥ चतुष्पदी चृद्‌।। जिनके यशर्दसा जगत प्रशंसा सुनिजन मानसर॑ता । लोचन अवुरूपनि श्याम स्वरूपनि अंजन अंजित संता ॥ कालच्यद््शी निगुणपर्शी होत विलम्ब न लांगे । तिनके गुण कहिहों सब सुख लदहिहों पाप पुरातन भागे ॥ २० ॥ टा०-बंदारक जे देवताहि तिनके इंदसमूह तिन करिके अभिवंदनीय अर्थ || जिनको अनेक देवता वन्दना करत स ज रामचंद्र फे पदपद्च पदकमर हँ तिन || मात्‌ केर॒वदास्त की मतिरूपी जौ भूतनया सीता हं ताके रोचन चंचरीकाय ते कहे चक श्रमरक ऐसे आचरण करत हैं अथ जब मुनि की आज्ञा सौ राम- | रि न अयपावनम प - क - ० + 0 स भ द




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