परलोक | Parlok

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Parlok by श्र्चन्द्र सोम - Shrchndr Som

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घपक्रामणिका 1 व्यास। जो लोग इहकालके सव नियमींका यथों- चित प्रतिपाठन करते हैं .उन्हें छा भय नहीं होना चाहिये । इस समय वह वढ़ी बोकी कि खुखे कोई कपड़ा ्रोटा देव, वड़ी सर्दी मालूम होती है। उस समग्र गरमौका मौसिम था, तिसपर भी उन्हें उतना जाड़ा भालम करते लेखकर खुसे भय होने लगा कि इनका सुक्तकाल व आापत्तुंचा । मैंने उन्हें कपड़ा आओोढ़ा दिया । ब्राह्मणौ । सैंने क्या इदकालके कार्य्यो को उत्तम रुपसे किया ै ? व्यास मसालम होता है कि आपने किया कै । ब्राह्मणीं। तव सुके कोई भय नहीं है। आयी सत्यराज ! अब सुखे कोई भय वा चिन्ता नहीं है। इतना कहते उनकी देह गोया हंसौसे भर गई और उनकी आाखें आनन्दसे चमकने छगों। तब वह फिर बोलीं “सेरे स्वामोके साथ यद्द देव-शरौर धारो जवान कौन है १” तब बोलो रकनेपर उद्धश्वास आरस्थ हुआ । झेंने उसी समय ध्यान लगाया, देखा कि आत्मा समस्त शरौरमें व्याप्त घो, पर अब कई तेज निकलकर मस्तिव्ककी तरफ दौड़ने लगा है। शरौरके वे सब अड्ड प्रथज् अब भौरे धोर आत्माकौ इच्छाके ' अनुसार काम करनेमें असमर्थ होने लगे हैं। आत्माका तेन जेसे जैसे उनके पाससे निकलकर ऊपरकों जानेको पेष्ठा करने छगा, वैसे वैसे उसे अपने पास. हो : रखने लिये वे -सब कोशिश करने गे. बहुत. दिनोसे एक




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