मानव धर्म भाग 1 | Manav Dharam Vol 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३)
(२९) ज्षण से ३६ छत्तीस ( मवंथा पराङ्मुख ) श्रौर
ात्मा से ६३ (सबंधा अनुकूल ) रहा, यद्दी कल्याण कारक है ।
(९३) मन घेचन और काय के साथ जो कषाय की बृत्ति है
घटी श्रनर्भ की जड़ हैं ।
(ग्ट) सश्षथ के श्रनुषूल श्रद्धा ही मोक्ष माग की आदि
जननी है ।
(२४५) कल्याण की प्राप्ति आतुरता से भहीं निराकुलता से
दोती है ।
(२१) कलैयाणे का मागे अपन आपको छाड़ अन्यत्र नहीं |
जब तैक अन्यथा देखन की हमारी प्रकृत रहेगी, तत्रतक
कल्याणं का मागं मिलना श्रवति दुलेम है ।
(२७) रागद्वेष के काणो से बचन। कल्याण का सच्चा
साधन है ।
(र<) कल्याणं का पथं निर्मल अभिप्राय हैं। इस श्रात्मा
ने भ्रनादिं काल से अपनी सेवा नहीं की कंबल पर पदार्थों के
संग्रह में ही अपने प्रिय जीवन को भुला दिया । भगवान अर+
हन्त का उपदेश है यदि अपना कल्याण चाहते हो तो पर
पदार्थों से आत्मीयता छोड़ो”
(९४) अभिपाय यदि निमल है हो बाह्य पदार्थ कल्याण में
धाधक श्रौर साधक कुछ भी नहीं हैं । साधक श्रौर बाधक तो
अपनी ही परिणति है ।
(३०) कल्याण का मागं सन्मति में है अन्यथा मानब धमं
का दुरुपयोग है ।
(३९) कल्याण के अथ संसार की प्रदुश्ति को लक्ष्य न बना
कर अपनी मलिनता को हदाने का प्रयत्न करना चाहिये ।
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