सूखाविपाक सूत्र | Sukhavipak Sutra

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Sukhavipak Sutra by अभय कुमार जी महाराज - Abhay Kumar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-- श खखवरिपार्स्‌र + ४ ~ पुद्रमारशोहि जाय विद ॥ग। भागाः ~ श्राय जम्बु) रातकुमाग सुधा का चरित्र इस प्रकार द! वतमान श्ररसर्पिणी कालरे चतुथ ्ार्मे ठम्तिणीप नामक एक गर था, ओ फिशाल भयनों से युक् स्विरनिभय व धन चान्यारि से समद्ध था । उस इस्निशीर्ष नगर के दादि की शोर दानक में 'पुपकर डक मामें कय एक सय फ्तुशों क पुष्प शरीर पलासे सददध उद्यान था। उस वगीचेमे छुनयन माल प्निय य कर ध प्रायतत था ह्‌ यूल ह स्मशीय था! वहा के शार महारा फगीनगष्र थे । जिन श्रफार महा निमयान गिरिराज परती थी अदा ऊचा! से गभौर्ता मे, विष्डभ मे, प्र परिनेपादि सेनेया रन्नमय पद्मयर दिक्षा से, नाना मणियों पय रनों के कूद से श्रीर करपरकी की श्रेपी श्ादि से क्षेत्र दी मयोदा ( दाने ) करने याला होने मे कारण महान माना जाता है, ठीक उमी शकार महाराजा रीनशयु भा श्न्य राजायों की शपिक्ता जाति, कुल, न्याय गीति श्रानि ने विपुल धन, कन, टन, मणि, मक्षिक खस, पिता, प्रमान, राज्य, मप, राट, सवाग, कोरा, पय वोष्या- गार इत्यादि द्वारा जाति श्र फुल दी म्या रग्यने के यारण महान थे । थे सयजन प्रिय, मन दा थानन्द यारी 'दौर रिस्दन यशा पथ कीर्लिठप सौरभ से सुरमित होने से सलय पदत के समान थे, ठया ्रीदराध, ध्य, गम्भा- यादि खं से सुरपते ग सद्या ये । मदारन रम न्ष के झन्त पुर में घारिणीरयी पमुप (रखिया ) थीं । है नद यान दे जर कि. किसी समय ~ * हे सनि योग्य थी । उसने _.. मे *




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