नागरीप्रचारिणी पत्रिका | Nagaripracharini Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
577
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संपादकीय ३१
उनके तिरोधान से हिंदी नागरी के विदन्मंडल में थो स्थान रिक इरा है ` `
उसकी पूर्ति निकट भविष्य में शक््य नहीं है । 1
भी छष्णदेवप्रसाद् गौड़
काशी को मस्ती के जीवंत प्रतिनिधि, हास्य व्यंग्य के प्रमुख शिल्पी, नागरिकता
के शिष्ट रूप, सुरुचिसंपननता के प्रतीक भी 'बेदब' थी. गत € माचे १८६८ को हमें
छोड़ गए । निषन के समय उनी वय ७३ वषंकीथी। मृत्युके प्रायः एक सप्ताह
पूवं वे एकं कवि संमेलन में प्रयाग गए थे । लोटते ही उन्हें ज्वर हो गया श्रौर २-३
दिनो में ही उनकी रग्शता प्राणघातक रूप में परिणत हो गई। फलतः उन्हें काशी-
हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरल्ाल चिकित्सालय में शरणागत करना पढ़ा श्रौर वहीं
उन्होंने श्रंतिम साँस ली । धर उनका स्वोस्थ्य दुर्बल श्रषश्य था पर किसी को यह
श्राशंका नहीं थी कि वे प्रयाण में इतनी शीघता कर काशी की श्रनोखी चीवनपरंपरा
को समेट लेगे ।
गौड़ जी का जन्म सं० १६५२ फो प्रबोधिनी एकादशी को काशी में ही
श्रा था । बाल्यकाल में पितूषियोग के कारण बे श्राजमगढ़ जिले के निजामाबाद
( श्रपने ननिद्दाल ! में कुछ दिन रहे थे । उनकी शिक्षा दीक्षा काशी तथा प्रयाग में
ईथी। उन्होंने एम० ए०, एल० टी० किया और काशीस्थ दयानंद स्कूल
(बाद में इंटर कालेज ) श्रध्यापक होकर जीवन कंत्र में प्रवेश किया । श्रागे उसी
विद्यालय के श्राचार्य होकर वे सेवानिवृत्त हुए। वे उन दुलभ व्यक्तियों में थे
जिनमें दैवयोग से रूप-रस-गुण का विचित्र समन्वय हुश्रा था । वे जहाँ कहीं जाते
हास बिखेरते हुए जाते थे श्रौर जहाँ नहीं जाते थे वहाँ उनका श्रमाव खटकता था |
सफल श्चष्यापक शोने के श्रतिरिक्त वे बहुमुखी रुचि के व्यक्ति थे। हास्य
ब्यंग्यकार के रूप में तो हिंदी जगत् उनसे परिचित ही है। ३०-४० वर्षो तक वे
इस दिशा में बगमगाते रहे । उन्हें संगीत से भी बड़ा प्रम था काशी की प्रमुख
संगीत संस्था “संगीत परिषद्! के वे मरात्र प्रेरक श्रौर संगीत संमेलनो के स्वागताण्यद्ख
रहे । उनके कारण संगीत मे साहित्य का श्रभूतपूवं संगम ह्येता था। मास्टर साइब
बड़ी शौकीन तबीयत के श्रादमी थे । जिन्होंने उन्दः निकट से देखा है वे जानते हैं
कि हर वस्तु वे बढ़िया से बढ़िया लाते थे। खाने खिलाने में भी उनका जोड़ कठिन
है। उनका सुरुचिपूर्ण अंयसंप्रह तथा उनकी झन्य सभी उपयोग को वस्वुएँ उनकी
इस रईसी तबीयत श्रौर परिष्कृत सुख्चि की साक्षी हैं ।
झमेक वर्षों तक वे उत्तर प्रदेशीय विधान परिषद् के मनोनीत खदस्य रहे |
काशी हो नहीं, बाइर भी कदाचित्ू ही कोई ऐसी संस्था होगी जिसका उनसे किसी न
कियो. प्रह्नार संबंध न रहा हो । हिंदी साहित्य संमेलन के कोटा शधिवेशन में
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